Book Title: Satyamrut Drhsuti Kand
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 160
________________ [१६२ ] सत्यामृत - - - - व्यर्थ है। हा, कोई शारीरिक विकारसा हो जिसका सभात्र पाया जाता है। अगर कहीं किसी बात दूसरे के शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता हो तो बात की बहलता देखी जाती है तो उसका कारण परि. दूसरी है, उसका बचाव अवश्य करना चाहिये। स्थिति है. जाति नहीं। परिस्थिति के बदलने से परन्तु मे शारीरिक विकार एक जाति उपगति बुरी जाति का मनुष्य अच्छा से अच्छा होजाता के भीतर भी पाये जा सकते हैं और दा के है। आफ्रिका के जो हशी अभी जंगली अवस्था जातिमेद में भी नहीं पाये जा सकते हैं इसलिये में रहते हैं सदाचार और सभ्यता का विचार जातिभेत के नाम पर इस बात पर ध्यान देने जिनमें वहन ही कम पाया जाता है, उन्ही में से की जरूरत नहीं है। बहुत से हब्शी अमेरिका में बसने पर अमेरिकनों ____ इस जातिभेन के नामपर एक आक्षेत्र यह सरीखे सभ्य सुशिक्षित हो गये हैं, हालांकि उनको भी किया जाना है कि इस प्रकार के वर्णान्तर. जैसे चाहिये वैसे साबन नहीं मिले इससे विवाहों से सन्तान ठीक नही होतो 1 अमुक मालूम होता है कि किसी भी गुण का ठेका किसी जगह कुछ गो ने हशी पों से शादी की जाति विशेप-वर्ण:वशेष ने नहीं लिया है। परतु उनकी सन्तान गोरा के समान वीर, साहसी इसका यह मतलब नहीं है कि एक सुसभ्य और बुद्धिमान न निकली . यह श्राक्षेप भी शता- नागरिक को जंगली लोगो से वैवाहिक सम्बन्ध न्दियों के अंध-संस्कार का फल है। ऐसे आक्षेप अवश्य स्थापित करना चाहिये । उदारता के नाम करते समय वे उसके असली कारणा को भूल पर अनमेल विवाह करने की कोइ जल त नहीं जाते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि जिस बालक को हैनरूरत सिर्फ इस बात की है कि हम जातिभेद स नहा दुखत के नामपर किसी को वैवाहिक सम्बन्ध में जुटा उसे नीच पतित और विजातीय समझकर थोडी न समझे । एकजंगली करतिके साथ हम सम्बन्ध बहुत घृणा रखते हैं, उसमें उस समाज के गुण नहीं उतरते। बच्चे को यदि समाज से बाहर कर नहीं करते इसका कारण यह न होना चाहिये कि दिया जाय तो पशु में और उसमें कुछ अन्तर न । उसकी जाति जुटी है किन्तु यह होना चाहिये कि होगा। अभी मा मनुष्य में जातिभेद इतना उसकी शिक्षा, सभ्यता, स्वभाव आदि से मेत अधिक है कि वर्णान्तर विवाह होनेपर भी साधा. नहीं खाता जाति के नामपर जब हम किसी के रण मनुष्य इससे घृणा ही करता है। फल यह साथ सम्बन्ध नहीं करते, तब उसका अर्थ यह होता है कि इस विवाद को सन्तान को एक होता है कि अगर यह सब बाता में हमारे समान प्रकार का असहयोग सहन करना पड़ता है। इस और अनुकूल हो जाय तो भी हम उसे जुना ही लिये समाज के गुए पालक को अच्छी तरह नहीं समझेगे इस प्रकार हमारा भेदभाव सहा के मिलने : दुसरा कारण यह है कि सन्तान पर लिये होगा । यही एक वटा भारी अनर्थ है इममाता और पिता दोनों का थोड़ा थोड़ा प्रभाव लिये जातिमद को दूर करने के लिये हम इस पढ़ता है । अब अगर उसमें से एक पक्ष अच्छी बात का रढ़ निश्चय करले कि अगर हमें किसी हो और दूसरा पक्ष हीन हो तो यह स्वाभाविक के साथ सम्बन्ध नहीं जोड़ना है तो इसके कारण है कि सन्तति मध्यम श्रेणी की हो। इसलिये में हजार बातें कहें परन्तु उनमें जाति का अपने अनुरूप व्यक्ति से सम्बन्ध जोडना चाहिये। नाम न आना चाहिये सच्चे दिल से इस वान ऐसी हालत मे सन्तति अवश्य ही अपने अनुरूप का पालन करना चाहिये। होगी। धीरता, बुद्धिमत्ता सदाचार, आदि गुण राष्ट्रभेद (शै अको)-जातिभेद के अन्य से नहीं हैं कि उनका ठेका किसी जाति-विशेष रूपों से राष्ट्र के नाम पर बने हुए जातिभेड मे ने लिया छा। सभी डानिया में इन गुणों का एक बेडा भारी मेद है । अन्य जातिमा राजनीति

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