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पापा
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गीत
मोजन पसन्द करते हैं उसके सिवाय दूसरे प्रकारों ३ जाति-समभाव (सानो सम्ममावो) फी हँसी उड़ाना, या द्वीप करना ठीक नहीं।। इसकी अगर आलोचना करना हो तो अपने पराये योगी का तीसरा दिख जातिसमभाव है। का भेद भूलकर, सविधा-असविधा का विचार हाथी घोड़ा सिंह 38 आदि जिस प्रकार एक फर, तथा अन्य हानि लामका विचारकर, करना एक तरह के गणी हैं उसी प्रकार मनुष्य मी एक चाहिये।
तरह का प्राणी है। मान्य शद पशु श द को धर्म समभाव सब की चापलूसी नहीं है,
तरह नाना तरह के प्राणा के समुदाय का
वाचक नहीं है, किन्तु सिंहादि शना की तरह विवेक को तिलालि नहीं है किन्तु सब के दोषों
एक ही तरह क प्राणी का वाचक है। या तो तथा युगवाहताओं को दूर कर गुणो का ग्रहण व्यक्ति व्यक्ति में भेद हा करता है और उन है, धार्मिक अहंकार और पक्षपात का त्याग है, भेगका थोड़ा बहुत वर्गीकरण भी हो सकता है और नि:पक्षतापूर्वक विनयपूर्ण आलोचना भी। परन्तु उन वर्गों को जातिभेद का कारण नहीं
योगी होने के लिये यह सवधर्म समभाव कह सकते । जातिभेद के लिये सहज दाम्पत्य का प्रावश्यक है।
अमाव और आकृति की अधिक विषमता आवश्यक है। मनुष्यो में ऐसी विषमता नहीं पाई
जाती और उनमें दाम्पत्य स्वाभाविक और मिलाये सब धर्मों का सार। सन्तानोत्पादक होना है। किसी भी जाति के हम सब का निचोड़ लेआयें।
पुरुष का सम्बन्ध किसी भी जाति की खो से होने धर्म और विज्ञान मिलायें ॥
पर सन्तानोत्पत्ति होगी: शरीरपरिमाण आदि के
अन्तर की बात दूसरी है। इससे मालूम होना है युगयुग की यह प्यास बुझायें, पियें पिलायें प्यार। कि मनुष्यमात्र एक ज्ञाति है।
मिलायें सब धर्मों का सार ॥१॥ प्राय: सभी धर्मशास्त्रों में इस बात का सब रस मिलें सजायें थाली।
उल्लेख मिलता है कि सभी मनुष्यों की एक जाति मिन्न भिन्न फूलों के साली ॥
है। आज जो इनके भेइ-रमे दिखाई देते हैं वे बरहतियों सन्न घने समधिन सुधरे लोकाचार। होनेवाले मेद मनुष्य की एक जातीयता को नष्ट
मौलिक नहीं है । वातावरण भादि के कारण पैदा मिलायें सब धर्मों का सार ॥२॥ नहीं कर सकते। भूत भविष्य न लड़ने पायें।
वैदिक शास्त्रों में मनुष्यों को मनुसन्तान पर्तमान से हिल मिलजाण ॥ कहा है इससे उनमें एकजातीयता ही नहीं एक देश देश की काल काल की बहे समन्वय धार। कादम्बकता
कौटुम्विकता भी सिद्ध होनी है। इसनराम और मिलायें सब धर्मो का सार ॥३॥
ईसाई धर्म के अनुसार सब मनुष्य आदम की
सन्तान हैं इसलिये भी उनमें भाईचारा सिद्ध मानवता का गाना गायें । होता है। जैनशास्त्रों के भोगभूमि युग के वर्णन
सर्वधर्म समभाष सुनायें ॥ से मनुष्यमात्र की एक जाति की मान्यता सर्व. भित मिन हो वार किन्तु हो मिली जुली मंकार। सम्मत मालून होती है। इस प्रकार प्राकृतिक
मिनायें सब धर्मों का सारा॥ दृष्टि से और शास्त्रों की मान्यता से सत्र मनुष्यों