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सत्यामृत
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के समय कर्मवाद अपनी उपपत्ति वैठा लेता है हुआ, फीस के लोभ से वैद्य डाक्टरो ने रोगियों तब समाजवाद साम्यवाद के सामूहिक विकास को लूटा ठगा और मार भी डाला, आज भी के समय भी बैठा लेता है और बैठालेगा। साधा. दवाईयो के झूले विज्ञापन लोगो का धन और रणतः धमों ने यत्नवाद का निषेध नहीं किया है। प्राण तक हर रहे हैं पर इस दुरुपयोग को रोकने हो । समाज के राजनैतिक आर्थिक ढाँचे के अन. की ही जरूरत है। इससे यह नहीं कहा जासार अपना निर्माण किया है। उनका काम तो सकता कि चिकित्सा शास्त्र लोगो को ठगने या मनुष्य में ईमानदारी त्याग सेवा सहयोग प्रादि लूटने के लिये बनाया गया था । भले ही चिकित्सा की भावना पैदा करना रहा है। जैसा भी राज- रक्खी जाय पर उसके नामपर ठगने वाले पैदा नैतिक और आर्थिक ढाँचा रहा उसी में उतने होजायेंगे पर इसीलिये प्राकृतिक चिकित्सा की यह काम किया।
उत्पत्ति ठगी के लिये कीगई है यह न कहा
जायगा। ___ आज राजनैतिक दृष्टि से मानव समान का काफी विकास होगया है फिर भी अभी मनुष्य . दुरुपयोग तो शिक्षा संस्थाओं का भी हुआ इतना विकसित नहीं होपाया है कि राज्य की है, होता है । साम्राज्यवादी शक्तियों अपने जरूरत न रहे। वह इतना ही कर सका है कि साम्राज्य यन्त्र के पुर्जे डालने के लिये शिक्षा सामन्ती शासन से प्रजातन्त्री शासन या समाज संस्थाश्री का दुरुपयोग करता है, पाहल भी किया वादी शासन लेनाया है। पर राज्यसंस्था के गया है, पर इसीलिये यह नहीं कहा जासकता कि दुरुपयोग पर दृष्टि डाली आय वो असंख्य हैं। शिक्षा संस्था की नींव इसलिये डाली गई थी कि राज्यसस्था जब से पैदा हुई तब से जितने मंद लोगों की बुद्धि और हृदय गुलाम बने। इस पृथ्वीतल पर हुए, और उनमे जितने जन धन मनुष्य ने मानवता के विकास के लिये का नाश हुआ, शासको द्वारा जनता पर जितने सैकड़ी तरह की संस्थाएँ बनाई है उनसे जहाँ अत्याचार हुए, लूटखसोट और रिश्वतखोरी हुई. असीम लाभ हुआ वा कुछ समय बाद उससे उतने ससार में और किसी संस्था के द्वारा नहीं नुकसान भी काफी हुआ पर मनुष्य इससे घव. हुए, इतने पर भी न हम बाज राज्यसंस्था उठाने राया नहीं, वह उन सब में सुधार करता गया, को तैयार है न यह कहना ही ठीक है कि राज्य- सुधार करता जारहा है। धर्मसंस्था के विषय में संस्था आदमियों को कत्ल करने लूटने रिश्वत भी यही बात है। इसलिये धर्मसंस्था को गाली खाने आदि के लिये पैदा हुई है। उसकी उत्पत्ति देने की, या उसका मजाक उड़ाने की जरूरत तो व्यवस्था और न्यायरक्षा के लिये हुई थी पर नहीं है। उनकी तुलना हो तो देशकाल के अनु. मनुष्यने सहसान्नियों तक इसका दुरुपयोग किया, सार मनुष्य के सहविकास को ध्यान में रखकर
आज भी कर रहा है फिर भी हम उसे मिटाने की करना चाहिये। नहीं सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। उसकी धर्मसंस्था क विषय में बहुत से भ्रम हैं उत्पत्ति को मनुष्य के लिये अभिशाप नही सम- और अच्छे अच्छे बुद्धिवादियों में भी है। ये भ्रम झते हैं । इसीप्रकार धर्मसंस्था भी न्यायरक्षा निकल जाय तो धर्म संस्था की तरतमता का उन्हें ज्यवस्था सहयोग ईमानदारी आदि के लिये हुई ठीक भान होजाय और एक तरह का धर्म-सम. थी, उसका दुरुपयोग हुआ है फिर भी हम उसकी भाव पैदा होजाय । यहा इस विषय में ये सूत्र उत्पत्ति को अभिशाप नहीं समझते, उसे विकसित ध्यान में रखना चाहिये। करने की ही कोशिश करते हैं।
१ धर्म संस्थाएँ मानवता के विकास के चिकित्सा शास्त्रका भी काफी दुपयोग लिये बनी थीं।