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दृष्टिकाड
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प्रश्न-हिन्दू धर्म को आपने भूत तीर्थों में कचरा भी नीचे स्तरों पर पड़ा हुआ है। इस गिन लिया है परन्तु इसकी अति प्राचीनता देख- प्रकार यह ऐसी पुरानी विशाल दूकान के समान कर और उसके भीतर घुसे हुए अन्धविश्वास वनगया है जहा पुराने से पुराने सड़े-गले माल के श्रादि देखकर यह मरणोपम तीर्थ मालूम होता साथ, नये से नये अच्छे माल का भंडार मरा है। धर्म समभावी इसका आदर कैसे कर सकता पडा है, पर इसीलिये इसे कचरे की दुकान या है या इससे प्रेरणा कैसे लेसकता है ? सड़मालकी दूकान नहीं कह सकते । जब इसमें . उतर-हिन्दू धर्म की परंपरा बहुत पुरानी है, यह एक संग्रह तीर्थ है। इसमे भ्रूणोपम तीर्थ ।
मिलमकता है तब अच्छी दूकानों में ही इसकी की बातें भी शामिल है फिर भी इसे भोपम गिनती की जायसी।। तीर्थ नहीं कह सकते । क्योंकि यह युग के अनु- . यो तो भरूणोपम तीर्थ के कुछ दोप जैन रूप विकास करता गया है। कुछ बातों पर बौद्ध आदि विकसित धर्मो मे भी पाये जाते है, ध्यान देने से ही यह बात समझ में आजाती है। मंत्र तंत्र और ऋद्धियों ने वहा भी जगह घेर
१-अहिंसा सत्य आदि संयम के ऊचे से रकवी है पर उनकी अन्य बातों को देखकर ॐचे प्रकार इसमें शामिल होगये हैं। जैसे इन दोषो पर उपेक्षा करके उन्हें विकसित ____२-इसके सर्वभूतहित के सिद्धांत ने इसकी ।
। तीर्थ मानते हैं उसी तरह हिन्दूधर्म को भी मानना संकुचितता को दूर कर दिया है।
धर्म की विकसितता अधिकसितता का ३-इसके सहयोगी दर्शन-शाख इतने , विकसित हैं कि उस जमाने में ही नहीं, किन्तु
निर्णय करने में यद्यपि यह भी देखना पड़ता है अभी कल तक इससे अच्छा दर्शन शास्त्र दूसरा
कि उसका दार्शनिक या वैज्ञानिक आधार किस नहीं दे सका । साख्य-दर्शन का प्रकृतिवाद,
__ श्रेणी का है, परन्तु इसके निर्णय की इससे भी वेदान्त का अद्वैत, वैशेषिक का भौतिक विज्ञान महत्वपुणे बात यह है कि उसका जीवन-सन्देश न्याय दर्शन का तर्क आदि सक्ष्म विचार भयो- क्या है, उसमें सदाचार सहयोग विश्वास प्रेम पम तीर्थों में संभव नहीं हैं।
आदि पर कितना जोर है और उसका क्षेत्र ज्याव
हारिकता को सम्हालकर कितना व्यापक है। Y-आत्मा कर्म-फल आदिकी व्यवस्था भी HOT
इस दृष्टि से विकसित होनेपर अगर अन्य दृष्टियों भी तीर्थ से कम नहीं है।
से अविकसित हुआ तो उसे विकसित कहा
जायगा। एक ऐसा धर्म, जिसमे मानवमात्र के -इसका कर्मयोग, बहुत ऊचे दर्जे की
हित का विचार नहीं है अपने राष्ट्र था गिरोह के चीज है । बहुतसे भूत ताथों में इसक जाड़ का ही हित का विचार है, किन्तु वैज्ञानिक दृष्टि से चीज नहीं मिलती।
काफी समुन्नत है, वह उतना विकसित नहीं है -इसकी समन्वय नीति भी काफी ऊंचे जितना मनुष्यमात्र के कल्याण का विचार करने । दर्जे की है।
वाला किन्तु वैज्ञानिक दृष्टि से कुछ कम समुन्नत ' इस प्रकार बहुत-सी खूवियाँ वताई डा. धर्म विकसित है। इस दृष्टि से हिन्दू धर्म काफी सकती हैं जो कणोपम तीर्थो मे नही पाई जा. विकसित कहा जासकता है। सकती। हा, यह बात अवश्य है कि इस धर्म- पर-हिन्दू धर्म की विशेषताओमें आपने' ती मे मूलक्रान्ति नहीं हुई, सुधारों की परंपग । उसका समन्वय भी बताया है पर हिन्दु धर्म समसे ही इसका विकास हुआ इसलिये पुगना न्वय धर्म नहीं कहा जासकता। यह तो जमकी'
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