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सायात
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सकता जितना गृहत्यागी के विषय में ला सकता उत्तर-मन:-शुदिन बगा हो सकती है। समाज जब उसे अपनी परिस्थिति में देश है पर उसकी ठीक रीक परीक्षा गा गधी सम्भव कर शान्त सदाचारी और सेवामय देखता है। झगटां के छूट जाने से जो स्थिरता बदना तब समाज पर उसके जीवन का अधिक प्रभाव पानि शियाई दनी वा यास्तविक नाम पडता है।
विकार के कारण मिलने पर भी जा विकार न -गृहत्यागी को जीवन की कमंट कम हो यही शुद्धि समझना चाहिये यो ना शेर भी हो जाती है इसलिये उसको अनुभव भी कम गुफा में योगी की तरह शान्त पा सता पर मिलने लगते हैं। इन्हीं अनुभवों के आधार पर इससे उसी असिकता सिद्ध हो सकनी । तो समाज को कुछ ठीक ठीक सीख दी जा अहिंसकना सिद्ध हो सकती है , जब भूय सकती है । शान्ति शान्ति चिल्लाने से समाज लगने पर और जानवग बीच में न्वतन्त्रता म संगीत का मजा ले सकती है पर प्रेरणा नही ले रहने पर भी यह शिकार न करे। चोगे करने का सकती। प्रेरणा उसे तभी मिलेगी जब उसकी अवसर न मिल्नं सं हम ईमानदार है इस बात परिस्थिति और योग्यता के अनुसार उसे प्राचार का कोई मूल्य नही । भामटी बीच में गाते का पाठ्यक्रम दिया जावेगा और परिस्थिति के हुग जो मनुष्य 'पने गनको चार श्राना भी अनुसार अपना उदाहरण पेश किया जावेगा। शान्न रमता है वह झमटा से बचे रस गृहत्यागी गृही की अपेक्षा इस विषय में साया- पाना शान्त मन से भ्रष्टा । न में पड़े होने रणत पीछे ही रहेगा । वैयक्तिक योग्यता की के कारण धूसरित होनेवाले हार की अपेक्षा यह धात दूसरी है और उसकी संभावना दोनों तरफ मिट्टी या पत्थर का टुकाधिक शुद्ध नहीं है
जो स्वर वान पर क्या हुआ है। शुक्षि की ६-गृह त्याग अस्वाभाविक है क्योकि सत्र परीक्षा के लिये दोनों को एक परिस्थिति में रसना गृहत्यागी होजाये तो समाज का नाश हो जाय। आवश्यक है। पर गृही के विषय में यह बात नहीं है । फिर नामयोगी-फिर यह गृही हो या गृहगृह-त्यागी को किसी न किसी रूप में गृहीं के त्यागी-झमटा में रहता है। समाज का व्यवहार
आश्रित तो रहना ही पड़ता है। इससे भी उस बिलकुन शाति से नहीं चल सकता, वहाँ निप्रह की अस्वाभाविकता मालूम होती है।
अनुग्रह करना ही पड़ता है और हम भी प्रगट इस का यह मतलब नहीं है कि गृह-त्यागी करना पड़ता है। दुनिया के वन से प्राणी से से गृही श्रेष्ठ है । साधारणत समाज-सेधा के है जो लोभ से ही किसी बात को समझते है। लिये घर द्वार छोडकर बो सन्चे साधु बन जाते जानवर से यह कहना पि जूल है फि 'साप वहाँ हैं वे गृहियों के द्वारा पूजनीय और वदनीय है। चले जाइये या यो कीजिये उसे तो लवडी या विश्वसेवा के अनुसार मूल्य भी उनका अधिक हाथ के द्वारा मारने का डौल करना पडेगा या है । परन्तु यहाँ तो इतनी बात कही जा रही है मारना पड़ेगा तब वह प्रापका भाव समझेगा । कि गहनत्यागी योगी को अपेक्षा गृही-योगी श्रेष्ठ ऐसी हालत में योगी का अहोभ म्हा रहेगा ? और अधिक आवश्यक है।
बहुन से मनुष्य भी ऐसे होते है जिन्हें सीधी ___ प्रम-गृह-वास में योग हो ही कैसे सकता तरह रोको तो वे रोकने का महन्व हो नहीं है १ घर की मामटो में किसी गृही का मन ऐसा समझते, क्रोध प्रगट करने पर ही वे श्राप का स्थिर नहीं हो सकता जैसा गृहत्यागी का रहता मतलब समझते हैं । गृहवास में जानवरो से वा है। इसलिये जो मन की दृढता, निर्लिप्तता, शुद्धि इस तरह का थोडा यहुत जानवरपन रखनेवाले गृहत्यागी की हो सकती है वह गृही की नहीं हो मनुध्यों से काम पडता ही है, समाज मे तो होम सकती।
भी भाषा का अंग बना हुआ है ऐसी हालत में