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लन्यामृत
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तब उस जमाने के लोगों ने निर्णय किया कि जो fairयामा ६ भी गिर पदार्थ मे गुरुत्व नामका एक धर्म है जिसमे नीज A r t पिने तीन नीचे गिरती है । इस निर्णय में तर्क के साथ फराना की गभी गरम । कल्पना का मिश्रण था। पतार्य उपर से नारे नागा गया मनमानी यथोत् पृथ्वी की पोर याता है इसका एक कारगण को मानविगामा पा मम्मा. यह कहा जासकता था कि पदार्थ में गुरुत्य धर्म चना बाचा परमो नालन हो, दूसरा यह कहा जासकता था कि पृथ्वीगे को मन को गोनही काम। आकर्षणशक्ति हो। यहा तर्क का काम इतना ही
समय भारतका था कि दोनों में या दोनोंमें से किसी एक में किसी
नहीं जाना गौरभावमा पाता शकिया धर्मका सद्भाव सिद्ध कादे । परन्तु पुगने
मकी का सम्माना नही। मगर नार्फिको ने इस सामान्य निर्णय के साथ विशेष प्रधिका पना या लगाना । कल्पना को मिलाकर गिरनेवाली वस्तुमे ही सीवथा मगर नामाथि पुगन गुरुत्व धर्म मानलिया जब कि इसकेलिये उनके ज्ञान में पद गला पान एमालय उमम पास विशेष तर्क नहीं था । बाद में जब विशेष शोश बढ़त परिवर्तन करना पक गहना मन्य खोज हुई तब यही मालूम हुआ कि गुरुत्व नामका को मिस काम मा माग ।। इसे कोई धर्म नहीं है, प्रत्येक भौतिक पदार्थ ( मेटर- वर्क या विधानप दी मरत. Matter) में आकर्षण शक्ति है जिससे वे एक बतिक प्रगुरु भनि भ ए
। दूसरे को खींचते हैं । प्रची विशाल पिंडहोने किसी पुराने EAR T जमारा से वह छोटे पिडा को अपनी ओर खीच लेती से स्थिरता तो पानी पामराम नही हैं। इसीका नाम गिरना हैं । इस नये सिद्धान्त शोता। नतम गरिब नई गाने ने पुरानी बात का खंडन कर दिया परन्त पुरानी बढा है और कुर बना दी AT " यही बातमे जितना तर्फ का अंश था उसका खडन कि कन का तर सर में शेमभर दूर था, नहीं किया । तर्क के साथ जो कल्पना के द्वास तो आज का नर्क मीलम या पगमादा है विशेप निर्णय किया गया था उसीका बंडन किंतु पुगना रूप तो गाना दूर था । मिता किया गया।
के नामपर सत्य मार्ग म पागे बढ़ने से इग्न इसीप्रकार दिनरात का भेद देखकर मनमय और पुराने पसे चिनदे रहना तो पहिरना ने सूर्य के गमनको कल्पना की, परन्तु यह भी कै नाममा जीवन से डरना और मौनसे विस्टे तर्क में कल्पना मिली । तर्क ने तो सिर्फ इतना रहता है। कोई बालक जवानी की ओर ब्रटंगा ही निर्णय किया कि दोनों में कुछ नन्तर पडता तो उसकी आज की बदनसी चीज कार होती है। वह चन्तर सूर्य की गति से भी होसकता है. आयी, अगर स्थिरता के नामपर ममी की पृथ्वी की गति से भी होसकता है, दोनो की गति नरह उने ममाल में पोतकर पत्र दिया जाय तो से भी होसकता है। तर्क ने तो सिर्फ सामान्य
सेकडा वर्ष स्थिर रहेगा, क्या इमीलिय वालक गति और अन्तर को सिद्ध किया । यह अन्तर का जपान अनने का अपहा मम
का जपान अनने की अपेक्षा ममी चनजाना किसकी गति से पैदा होता है इसलिये विशेष न्या कहा जासकता है ? हेतु की श्रावश्यकता थी जोकि उस समय मिला
एक दिन मनुष्यने पूछी की अचला कहा, नहीं, इसलिये विद्वानों ने कल्पना से सूर्यको चल और सूर्य को उसक चारो ओर घूमता माना, मानलिया। पीछे इस बात का खंडन होगया परन्तु कालान्तर में मनुष्य को विशेष ज्ञान हुआ. उस इसे तर्फ का खंडन न समझना चाहिये। तर्फ ने मत बटला तत्र उसने गुरुत्वाकर्षण मानकर