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सत्यामृत
क अगर हम इसे पूग यश न दे पायंगे तो यह का बलिदान न करेगे तो सच्चा यश पाजायेंगे, सेवा भी न देगा, तब यह तो एक व्यापारी कह- अगर जीवन मे वह दिखाई न देगा तो भविष्य नाया परोपकारी नहीं, लोगों के मन में यह भाव में मिलेगा और उसका दिव्यदर्शन हम आज ही पाया कि कृतज्ञता कम हुई. और यही तो यश कर सकेगे और उसका महत्वानन्द लेसकेगे। को कमी है। इसलिये यश की पर्वाह के बिना हो । जब यह महत्वानन्द घमण्ड पैदा करदे, लोकहित के काम में डटे रहने से सच्चा हित कृतघ्नता पैदा करदे, सेवा में बाधा डालने लगमिलता है। इसके निर्णय की कसौटी यह है कि जाय तो दुःसुख होजाता है, इससे वचना चाहिये। लोकहित और वर्तमान यश में अगर विरोध हो -तप [ तुपो स्वपरकल्याण के लिये नो, मनुष्य लोकहित की तरफ चलाजाये। तब विशेष साधना को तप कहते हैं। तप से भी समझा जायगा कि यश इसलिये गौण था। महत्व बढ़ता है और उससे अानन्द मिलता है। नर महाकाल के यहा उसके यश का हिसाब पर कभी कभी नप का बाहरी प्रदर्शन तो होजावा लिया जाने लगेगा। इसलिय यश को गौण है पर उसके अनुरूप स्वपरकल्याण की साधना ग्वना बावश्यक है।
नही होपाती, बल्कि उस साधना का लक्ष्य भी अपने मुंह से अपने गीत गाने से यश नहीं नही हाता, किसी तरह महत्व प्राप्त करना था मिलता था कम होता है, इसलिये आत्मविज्ञापन मुफ्त में खानेपीने के साधन जुटाना ही उसका अन्या नहीं समझा जाना । । । सेवा की भावना लक्ष्य रहता है। यह एक तरह का ठगपन हे इसमें की यह आवश्यक होपडे. संवा का क्षेत्र लियं दु सुग्व है । इससे दूर रहना चाहिये । नयार करने के लिय उपयोगिता मालूम हो
नोक ला चना 7 विषयों को इस तरह र अनिवार्य समझकर मर्यादित रूप में किया बनाना किमन और इन्द्रियों का विशप आकजासकता है। जैसे कार्ड चीमा चिकित्सा कगना पण होसके, इस कला कहते हैं। थोडे खर्च मे चाहता हो, नाग मम जननिय अपरिचिन ही, ना अभिक आकर्षकता लाना इसकी सफलता की उनना आत्मपरिचय से देना पड़ता है जिसस कमोटी है। काला के द्वारा अच्छी अन्झी कल्याण. (उमम निकित्सा न नि लायक और चिकित्सा का चीज लोगों के पास पहुँचाई जानकती है,
के लिए उपयोगी प्रनुशासन मानने लायक इसरकार यह जनसेवा में बहुत उपयोगी होसविश्वास पहा होजाय। नाही कारण है कि कभी की है। पर विषयानन्द को मात्रा से अधिक सभी लोकाना न्याया का भी माली या अप. कान में इसका काफी उपयोग होता है इससे 'रिचित के गागन एक पार कर ग्राम-- बचना और बचाना चाहिय। अपनी कला का विमान का परना है जिसमें जनता उन्हें उपयोग विषयान्यता बढाने के लिय कभीज
मोमो यचनी सही मृत्व र करना चाहिय। जो लोग कहते है कि कला कलाके मोम नुमा चतकार श्रान्म-कल्याण नियं है नापी अधूरी बात कहते है। वास्तव में
ममम यी बाबी जामस्नी हैं कि मला मग फलिय अधात न्यपकल्याण के लिए नागविताना या या जनहित के पिया है। कई कि कना फाशर का मानना
माना मार मम मिमी प्रभारी ई. पर उसका अमली प्रयोग यह है कि TAIT माती पानी थी। मन- गला दीवानन्दनायकता के अग्यिं मन और Trir tin Kालय नगाजगंवा न्द्रियों को चिका स्वपकन्याम के पत्र में inta: । मनासमेग याने द्रा लागा जाय। तमी या सम्सव कानागी ।
नामक न यन मन्ले मम पाना ही लीलया जाय और उसीम • REMO
पारित मानी ममामि मानी जानना या सत्रीज मन