________________
दपिकांड
M
ammu
Downmen
इसके वास्तविक उपाय नहीं है, इसका एक मात्र दूसरो को दुःची देखकर जो मानन्द मिलता है
पाय है संयम, जो पाप से निवृत्त करदे और वह रौद्रानन्द है। निरपराध को दुःखी देखकर पाए की राह में आनेवाले दुःखो से भी बचाद। जो सुख होगा वह रौद्रानन्द पापानन्द कहा इसीप्रकार परकृत और स्वचत्त दुदु:खों का भी जायगा पर रावण सरीखे पापी को दु:खी देखकर एकमान्न उपाय संयम है। दूसरे उपाय थोड़ी-बहुत जो सन्तोष या श्रानन्द होगा वह सत् सैद्रानन्द मात्रा में सफल भी हो और वर्तमान दु:ख कुछ कहा जायगा । इसप्रकार रौद्रानन्द यहां व्यापक घद भी जायें, तो भी उसकी बुराई जो जीवन में अर्थ में लेना चाहिये । हा, बोलचाल मे जहां घुसगई है वह दूर न होगी। इसलिये संयम का रौद्रानन्द के साथ सत् आदि कोई अच्छा विशेउपयोग अवश्य करना चाहिये। इसके साथ पण न लगाया जाय वहा रौद्रानन्द का पापानन्द चिकित्सा का उपयोग किया जासकता है। अर्थ करना चाहिये। पहिले रौद्रानन्द का अर्थ
सुखोपाय (शिम्मोरही) इसी व्यावहारिकता को लेकर किया गया है। दुःख करने के साथ सुख पाने की भी -सत्सुखमय प्राकृतिक ज्ञानानन्त-प्रकृति कोशिश करना जरूरी है। पहिले जो आठ तरह एक खुली हुई किताब है। उसे थोड़ी बहुत मात्रा के सुख वत्ताये गये हैं उनके भी तीन तीन रूप में हरएक पढ़ता है और उसके ज्ञान से आनन्द किये गये थे, सत्सुख, अबीजसुख और दुःसुख । उठा सकता है। अगर वह ज्ञान मविष्य में सुखये प्राकृतिक भी होते हैं. परकृत भी होते है वर्धन के काम आता है तो वह सत्सुख है। इसके
और स्वकृत भी होते हैं । इसप्रकार सुख लिये जिज्ञासा वृत्ति चाहिये, भविष्य में ज्ञान काम । के बहत्तर भेद होजाते हैं । जैसे एक नक्शे आसके इसकेलिये धारणा शक्ति विवेक और प्रेम के द्वारा दु:ख के एक सौ आठ भेट ध्यान मे रक्खे चाहिये, आनन्दी मनोवृत्ति चाहिये। यह आनन्द गये थे उसी प्रकार सुख के यहत्तर भेट भी ध्यान बहुत सुलभ और सस्ता है। प्रकृति बहुत खुले ., में रखना चाहिये।
हाथो यह ज्ञानानन्द विखेरती रहती है।
ज्ञाननन्द | प्रेमानन्द जीवनानन्द विनोदानन्दस्वतंत्रतानंद विषयानन्द महत्वानन्द सैद्रानन्द |
प्राकृतिक
परकृत
स्वात
सरसुव
दुःसुव
मोनो पंक्तियों की एक एक संख्या जोडकर २-ससुखमय प्राकृतिक प्रेमानन्द-प्रमा सल का इच्छित भेद निकाल लेना चाहिये। इतनी शिव और सुन्दर है कि हमारे भीतर ___ यहा एक बात ध्यान में रखना चाहिये कि एक तरह का प्रेम और आत्मीयता का भावना गद्वानन्द का अर्थ व्यापक है। गैद्रानन्द का अर्थ कर देती है। इस प्रकृति प्रेम का उपयोग अपार यहा पापानन्द ही नहीं है किन्तु सामान्य रूप में जगत् को और सुन्दर बनाने में सायमय बनाने