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सत्यामृत
उत्तर--उसमें तक्षण है क्योंकि उसमें प्राणों इसलिये सब मनोवत्तियों को कषाय नहीं कहते । का नाश किया जाता है चित्त को क्लेशित किया इस बात को अच्छी तरह से समझने के लिये जाता है । मनुष्य आत्महत्या तभी करता है जब मनोवृत्तियों के भेद प्रभेदों को अच्छी तरह जान कोई बात-घटना या परिस्थिति उसकी इच्छा के लेना चाहिये। प्रतिकूल हो जाती है । उसके कारण जब उसके
मनोवृत्ति के भेद मन में दूसरों पर क्रोध मान या मोह का ऐसा
मनोवृत्ति दो तरह की होती है १ इच्छाउद्वेग पैदा होता है जिसे वह सह नीं सकता तब आत्महत्या करता है । जहाँ आत्महत्या विश्व
रूप २ अनिच्छारूप । इच्छारूप के तीन भेद सुख वर्धन का अंग है वहाँ वह भगवती अहिंसा
हैं १ प्रेम ( उत्तम ) २ रुचि ( मध्यम ) ३ का प्रसाद बन जाती है इसलिये वह धर्म है। मोह ( जघन्य ) । अनिच्छारूप के तीन भेद हैं ___ भगवती अहिंसा की साधना के लिये यह
१ विरक्ति ( उत्तम ) २ अरुचि ( मध्यम ) आवश्यक है कि हम वर्धन और रक्षण का कार्य
३ द्वेष ( जघन्य ) । प्रेम और विरक्ति एक ही करें भक्षण सीमित और कम से कम करें तक्षण
तिक्केकी दो बाजू की तरह है, इसी प्रकार रुचि से बचें अथवा उतना ही तक्षण करें जितना
और अरुचि, मोह और द्वेष । प्रेम के तीन भेद वर्धन या रक्षण के लिये अनिवार्य हो उठा हो।
हैं १ भक्ति २ वात्सल्य ३ मैत्री। रुचि के हिंसा पापिनी के दो शस्त्र हैं छल और बल, इन
पांच भेद हैं १ काम २ हास्य ३ आशा ४ शस्त्रोंका उपयोग हम न करें न्याय को ही परम
उत्साह ५ आश्चर्य । उसमें काम के चार भेद हैं शस्त्र समझें । परन्तु जहाँ न्याय के लिये या वर्धन १ भोग २ उपभोग ३ सहभोग ४ स्वभोग ।
और रक्षण के लिये या हिंसा पापिनी को परा- मोह के चार भेद हैं १ अर्थ मोह ( लोभ ) जित करने के लिये उसी के शस्त्र की जरूरत २ नाम मोह, ३ जाति मोह ४ कुल मोह । हो वहाँ छल और बल का भी उपयोग करें पर विरक्ति दो तरह की है १ चिकित्सा २ उपेक्षा। इन्हें एक प्रकार से अपवाद समझें ।
अरुचि पांच तरह की है १ घृणा २ शोक ३ साधना के अंग
चिन्ता ४ भय ५ आश्चर्य । द्वेष तीन तरह का भगवती की साधना के तीन अंग है।
है ? १ क्रोध २ मान ३ छल । मोह क्रोध मान १ मन २ जीबन और ३ लोक । अपने मन को
___ और छल इन चारों को कषाय कहते हैं ।
" पवित्र अर्थात् अकषाय बनाना मन सावना है। मनोवृत्तियों के जो भेद प्रभेद यहाँ बताये काय मन की वह मलिन अवस्था है जो अपने गये हैं उन सबके अर्थात प्रत्येक के दो दो रूप होते और दूसरों के दुःख का कारण है, जैस क्रोध है एक वह जो बहुत समय तक अन्दर ही अन्दर कोभ मद आदि । मन की चंचलता का नाम संस्कार रूप में बना रहता है दूसरा वह जो मसिलता नहीं है और न मन की स्थिरता का क्षणिक आवेगों के रूप में आता है और शीघ्र नाम शुद्धता । दुष्मान में भी मन स्थिर हो जाता मिट जाता है संस्कार रूप में वह बहुत समय है और पवित्र हाय भी आनन्दनृत्य करता है तक नहीं रहता । उत्तम श्रेणी की मनोवृत्तियों के