Book Title: Satyamrut Achar Kand
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 205
________________ सत्यामृत ९ बिना ब्याज के गरीबों को पूँजी देन।। से दान देना चाहिये । देखना चाहिये कि इससे वे आलसी और किसी किसी समाज में दान की विधियाँ अपव्ययी तो नहीं बनते, वे ईमानदार रहते हैं कि भी प्रचलित हो जाती हैं । साधुमुनि आदि को नहीं आदि । इस तरह प्रणाम करके हाथ जोड़कर प्रदक्षिणा देकर १० अन्याय दूर करने के लिये व्यक्तियों दान देना चाहिये यों पैर छूना चाहिये यों बोलना या संस्थाओं को सहायता करना । चाहिये आदि । पात्रदान की ये विधियाँ सिर्फ देखना यह चाहिये कि अन्याय हटाने का इसलिये थीं कि दानी में अहंकार न आ जाय मार्ग ठीक है या नहीं ? इस काम में लगनेवाले और लेनेवाला जनसेवक दीनता का अनुभव न व्यक्ति ईमानदार हैं या नहीं ? वास्तव में अन्याय करने लगे । इस भाव की रक्षा होना चाहिये पर हटाया जा रहा है या अन्याय हटाने के बहाने मनुष्य को ईश्वर की तरह पूजना ठीक नहीं और दूसरों पर अन्याय किया जा रहा है। सम्प्रदाय या वेष के विचार से ऐसी विधियाँ ११ देश के उद्योग धन्धे बढ़ाना । चलाना भी ठीक नहीं है। नम्रता प्रगट करने के देखना यह चाहिये कि यह उन्नति देश की बेकारी साधारण शिष्टाचार रहना चाहिये । विधि की को तो नहीं बढ़ाती,सिर्फ राष्ट्रीय हित ही नहीं मानव- विडम्बना ठीक नहीं। समाज का हित भी इसका लक्ष्य है कि नहीं । घ-अवसर-दान में अवसर का बड़ा मूल्य दसरे देश के अपने देश पर होने वाले आर्थिक है मौके पर दिया हुआ पैसा रुपये से भी कई आक्रमण को रोकना ठीक है पर दूसरे देश पर गुणा बन जाता है । आर्थिक आक्रमण न करना चाहिये । हां, जो बे मौके दिये हुए रुपये की कीमत पैसे से भी अन्तर्राष्ट्रीय आवश्यक विनिमय है वह किया कम हो जाती है। एक छोटे से पोवे को मौके पर जा सकता है । नि:स्वार्थभाव से देश के उद्योग लोटा भर जल दिया जाय तो बड़े काम का होगा, धन्धा को बढाने या उन्हें निर्दोष बनाने के लिये सख जाने पर घड़ों पानी डाला जाय तो किस दान देना भी बहुत उपयोगी है। काम का ? अथवा वह पौधा जब बड़ा झाड़ बन इस प्रकार हर एक दान में उसका उपयोग जाय तो उसके लिये तुम लोटे पर पानी डालो या देखना चाहिये। न डालो उसके लिये बराबर है। मेरे पास खाने ग-विधि-दान जिस तरह दिया जाय उस को है तब तुमने खिलाया तो उसका बहुत कम पर दान का महत्त्व निर्भर है। झिडक कर दान मूल्य है मेरे पास खाने को नहीं है तब तुमने देना और प्रेम से दान देना इनमें बहत अन्तर है। खिलाया तो उसका बड़ा मूल्य है। विधि के बिगड़ जाने से देना न देने से भी बुग महावीर बुद्ध आदि महात्माओं के कार्य में हो सकता है इसलिये यथायोग्य प्रेम के साथ दान जिनने प्रारम्भ में सहयोग दिया, दान दिया उनका देना चाहिये । भक्ति बन्धुत्व वात्सल्य आदि जिस जो स्थान है वह उनके पीछे सैकड़ें। गुणा देने भाव का मौका हो उसी भाव से और उसी ढंग वालों का नहीं है ।

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