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सत्यामृत
के चौदह भेद होते हैं । पहिले दो तरह के प्राणी चौदहवें वर्ग में पहुँचा हुआ प्राणी जीवअर्थात् गर्तस्थ और भूमिस्थ तो कल्याण पथ में मुक्त है । मरने के बाद जो कुछ ऊंचा से उँचा ही नहीं हैं। सद्दृष्टि से कल्याण पथ स्थान कहा जा सकता है । या कहा जाता है वह शुरू होता है और योगी जीवन कल्याण पथ में स्थान योगी को ही मिल सकता है। वैकुण्ठ मोक्ष, सबसे आगे है। योगीको भगवान सत्य और भगवती ईश्वर-मिलन ब्रह्ममाप्ति आदि सत्र- योगीके ही हाथ अहिंसा का पूरा उपासक, भक्त, सेवक, पुत्र आदि में आसकते हैं । जब तक वह जीता है तबतक कह सकते हैं।
उससे जगत् का कल्याण होता है और उसका ___ मानव जीवन को पाकर जो गर्तस्थ है वह भी कल्याण होता है । वह कर्म करते हुये भी बड़ा-से-बड़ा अभागी है और जो भूनिस्थ है, मनुष्य कर्म से लिप्त नहीं होता, हर तरह की गरीबी में होकर भी कल्याण पथ पर नहीं चलता वह आंखें रहते भी वह परमसुखी रहता है । इए भी अंधा है। इसलिए हरएक आदमी को आच रस्थान के इन चादह स्थानों में जो कम से कम सदृष्टि तो बनना ही चाहिये । बारह श्रेणियाँ हैं उन में से अनेक श्रेणियों के
पर किसी भी श्रेणी में संतुष्ट होजाना अनेक नियम ऐसे हैं जो साधारण नागरिक के ठीक नहीं। सदा आगे की श्रेणी में बढ़ने की भी आवश्यक हैं । जैसे झूठ बोलना आदि का-त्याग उमंग होना चाहिये, न बढ़ पाने का खेद होनी चौथी श्रेणीमें कराया गया है व्यभिचार का त्य ग चाहिये । पूर्ण धर्म का कोई पालन कर सके या पाचवीं अंगी में कराया गया है प्रायश्रित विनय न कर सके पर उसकी अच्छाई का विश्वास उसे आदि तप ग्यारहवी श्रेणी में बतलाये गये हैं, होना चाहिये। और अच्छाई के विश्वास का चिन्ह इसका यह मतलय नहीं है कि उन श्रेणियों में यह है कि उसके पाने की लालसा हो, प्रयत्न हो, पहुँचने पर ही उन नियमों का पाटन करना न पाने का खेट हो।
चाहिये । बहुतसी श्रेणियों के बहुत से काम इन बारह श्रेणियों में अभ्यासी तक की तीन नागरिकता की साधारण योग्यता में शामिल हैं। श्रेणियाँ जघन्य हैं । व्रती से दिव्याहारी तक छः जैसे बाजार के उतार चढ़ाव की बातें और श्रीणयाँ मध्यम हैं और साधु तपस्वी योगी की अर्थ-शास्त्र के बहुत से सिद्धान्त मेट्रिक के बाद तीन श्रेणियाँ उत्तम हैं। हरएक मनुष्य को कोशिश अर्थ-शास्त्रके विद्यार्थी को पढाये जाते हैं पर करना चाहिये कि जीवन में कभी-न-कभी वह इसका यह मतलब नहीं है कि जो अर्थ शास्त्र उत्तम श्रेणी तक अवश्य पहुँच जाय और जीवन का विद्यार्थी नहीं बनपाया है वह बाजार की के अन्त तक उसी श्रेणी में रहे।
मामूली बातों से परिचित न हो । कोई यह बहाना बारह श्रोणयाँ और गतेस्थ भूमिस्थ ये दो बताये कि मैं ते। अर्थ-शास्त्र का विद्यार्थी नहीं हूं भेद इस प्रकार इन चौदह भेदोंको आचारस्थान, इसलिये बाज़ार में से सौदा नहीं लासकता तो संयमस्थान, गुणस्थान, आचारवर्ग आदि उसे पागल ही कहेगे, इसी प्रकार कोई यह कहे कहते हैं।
कि मैं तो अमुक श्रेणी में नहीं हूं इसलिये. मुझ