Book Title: Satyamrut Achar Kand
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 224
________________ कल्याण पथ उपसंहार सत्य और अहिंसा में से हम किसी एकको छोड़ नहीं सकते । जहाँ सत्य है वहीं अहिंसा है अ.चार कांड में वैयक्तिक आर सामाजिक जहां अहिंसा है वहीं सत्य है, अगर एक नहीं है जीवन सुधार के बारे में काफी विचार किया गया तो दूसरा भी नहीं है। ये एक ही ईश्वरके दो है। ऊँचे से ऊँवा आध्यात्मिक विकास तथा अंग हैं, एक ही धर्म के दो पहलू हैं। मनुष्य ऊँची से ऊँची सामाजिक सुव्यवस्था का निर्देश का जीवन इन्हीं भगवान भगवनी के चरणोमें लीन यहाँ हुआ है । एक बार अगर हम सामाजिक हो जाय उनकी ओर प्रतिदिन बढ़ता जाय इसी अवस्था में सुधार न कर सकें पर अपना सुधार उसकी सार्थकता है। कर सके तो हम अपनी ऐहिक और पारलौकिक ली और शक्ति इन्हीं की दासिय हैं जहाँ उन्नति कर सकते है। यह भ्रा ने कल देना ये इनकी दासियों नहीं बनी हैं वहीं नरक है चाहिये कि सना ज क संप में आनेस हमारा आ जहाँ ये इनकी दासियाँ बनी हैं वहीं खर्ग है । धानिक पतन होता है। समाज के स में हर एक मनुष्य को इस प्रकार की नई दुनिया आनेपर तो हमारा आध्यातिक पतन प्रगट होत बनाने की कोशिश करना चाहिये कि जिसमें भगवान है, छिपे हुए दबे हुए पतन का पता लगता है, सत्य और भगवती अहिंसा की सच्ची भक्ति होती अपने संयम और सत्य की परीक्षा हाती है, इस हो। जहाँ शक्ति लक्ष्मी सरस्वती और कला ये चारें परीक्षा से डरना न चाहिये । अपने को सत्य का दिव्यमूर्तियां भगवान भगवती के आगे सिर झुकाये भक्त या पुजारी और अहिंसा के अनुयायी या नम्रभाव से खड़ी हों। सेवक बनाकर यथाशस्य परकल्याण में लगना हम अपने भीतरी और बाहरी आचार की शुद्धि चाहिये । इस प्रकार का जीवन ही स्त्र कल्याण से एसा जगत बनासकते है और जगत ऐसा बने पाता है, आत्मशुद्धि करता है मुक्ति वैकुण्ठ या इसके पहिले ही ऐसे जगत के नागरिक बनकर पूर्ण अल्लाह के दर्बार में पहुँचता है। सुग्वी बन मकते हैं। ॥ आचार कांड मंपूर्ण ॥

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