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कल्याणपथ
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उत्तर-साधुता के लिये इनमें से कोई हैं उनका जो विशेष रूपमें पालन करता है यह मर्यादा निश्चित नहीं की जा सकती, हां साधु- तपस्वी है । संस्था के लिये कोई न कोई मर्यादा बनाई जाती साधु जीवन में किसी न किसी रूपमें तपकी है पर इन मर्यादाओं में देशकाल पात्र के थोड़े आवश्यकता होती है पर साधुता को बढ़ाने के थोडे परिवर्तनों से परिवर्तन होता है इसलिये लिये और योगी बनने के लिये तपकी विशेष साधु संस्था के लिये भी सामान्य रूप में कोई जरूरत है जिससे वह विशेष ज्ञानी विशेष जनमर्यादा नहीं बन सकती । हो, जब जिस प्रकार सेवक और विशेष पवित्र और विशेष रूप से सन्तुष्ट की साधु संस्था की जरूरत होगी वैसी मर्यादाएँ और सूखी बन सके। उस के लिये निश्चित की जायेंगी।
तप का वर्णन भगवती की विशेष साधना साधुता की बात आचार कांड से सम्बन्ध नामक अध्याय में किया गया है। रखती है पर साधु संस्था की बात व्यवहार कांड
१२ योगी से सम्बन्ध रावनी है इमलिये साधु संस्था के
ग्यारह श्रेणियों में जो कमी रह जाती है विषय में यहां विशेष कुछ नहीं कहा जा सकता।
वह योगी के जीवन में पूरी हो जाती है। योगी सधुमस्या, जन-सेवा के कार्य के लिये या
में विशेषता यह है कि वह अवस्था-तमभात्री भी किसी ग्वास कार्य के लिये एक संगठित उद्योग है
होता है। उसके विषय में यह कहा जा सकता इसलिये माधुमस्था के मदस्यों को उस साधुसंस्था के नियमों का पालन करना ही चाहिये । पर जो
विपन बिरोध उपेक्षा मिलकर कर न सके साहसका नाश । साधु मंगठन में नहीं है अपने तरीके से या किसी
कर न सकें असफलताएँ भी, कार्यक्षेत्र में उसे निराश ।। दृसरे तरीके से जन- सेवा करता हुआ पवित्र १ जीवन बिता रहा है वह उस संगठन के नियमों का दृष्टिकांड के योगदृष्टि अध्याय में चारयोरें पालन न करता हुआ भी साधु हो सकता है। का विवेचन किया . गया है और यदि वह सदाचारी है और कम से कम लेकर अधिक लक्षण दृष्टि अध्याय में योगी के पांचचिन्द्रों से अधिक देता है तो वह साधु है।
का विस्तार से विवेचन किया गया है साथ ही यह भी हो सकता है कि कोई किसी साधु- उसा अध्याय के अन्त में योगी की तीन लब्धियों संस्था के नियमों का पालन तो कर रहा हो पर का विवेचन किया गया है उस सब विवेचन से साधु न हो क्यों कि उस के जीवन में उतनी
समझ लेना चाहिये कि योगी का जीवन कैसा पवित्रता और निस्वार्थता न आ पाई हो । इसप्रकार होता है और कितने तरह का होता है। साधुसंस्था के संगठन में नियमों की अनिवार्यता उस प्रकार का योगी जीवन ही आदर्श रहने पर भी साधता के प्रकरण में उनपर जोर जीवन हैं और जनसमाज में उस प्रकार के
योगियों का हो जाना ही मानव समाज का चरम नहीं दिया जा सकता। ११ तपस्वी
विकास है। पहिले जो पांच प्रकार के तप बताये गये इस प्रकार कल्याण-पथकी हीष्टे से प्राणियों