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कल्याण पथ
तो ऐसा पाप कर ही नहीं सकता । सशील होने के है वहां मांस का त्याग करना ही चाहिये । लिये असहचरगमन, वेश्यागमन. अप्रमाणित प्रश्न-रामकृष्ण इमा बुद्ध मुहम्मद अ सहचरगमन भी छोड़ना जरूरी है ।
महामाओं ने मांस--सेवन किया था पर इन ६ सदभागी
जीवन- विकास काफी ऊचे दर्जे का था जब मांस और मय का त्याग करनेवाला सद्भोग इस श्रेणी विभाग के अनुसार वे ट्रां श्रेणी कहलाता है । भगवती के उपांग के प्रकरण में भी नहीं थे । वास्तव में उन्हें किस श्रेणी इसका विवंचन किया गया है उसके अनुसार इन माना जाय ? दुर्भागों का त्याग करना चाहिये ।
उत्तर-यहां जो बारह श्रेणियाँ बनाई गई प्रश्न-बहुत से लोग कुल परम्परा से ही उनमें जो बाह्याचार का विभाग बनाया गया मांस और शराब के त्यागी रहते हैं वे बिना वह आज की दृष्टि से है। मानव समाज क्रम प्रयत्न के ही इस श्रेणी में आजायगे और बहत विकसित होता जा रहा है अथवा उसे क्रम से लोगों की परिस्थिति ऐसी रहती है कि व मांस विकसित होना चाहिये । इसलिये ऐसी बहुत मद्य का त्याग नहीं कर सकते उनके यहां का बातें हो सकती है जो पहिले के महात्माओं हवापानी आदि उन्हें जिन्दा न रहने देगा तब वे भी नहीं थीं और आज के साधारण व्यक्ति में जीवन का ऊंचा से ऊंचा विकास करके इस छट्टी पाई जा सकती हैं । किसी व्यक्ति की मह श्रेणी में न आपायेगे । तब इन श्रेणियों का जीवन जानने के लिये उसके देशकाल का विचार जरू के विकास से क्या सम्बन्ध रहेगा ?
है । जब समाज के अधिकांश लोग मांस खाते उत्तर-केवल मद्यमांस न खाने से कोई उट्टी तब के रिवाज के रूपमें ऐसे व्यक्ति भी खाते में श्रेणी नहीं पा सकता। इसके लिये पहिली पांच रहते हैं जो अन्य दृष्टियों से काफी ऊंचे दर्जे श्रेणी में उत्तीर्ण होना आवश्यक है। हां, जीवन- संयमी हैं । ऐतिहासिक व्यक्तियों का विचार क विकास के अनेक रूप हैं जो जिसको पाटे वही समय हमें ऐतिहासिक परिस्थिति का विचार कर अच्छा । पांच श्रेणियों में उत्तीर्ण न होनवाला चाहिये। अगर सद्भोगी है तो किसी अंश में वह अच्छा ही फिर एक बात और है । जैसे अनेक विद है। हां वह छट्ठी श्रेणविाला नहीं है।
पीठों का पाठ्यक्रम जुदा जुदा रहता है उन जो लोग मांस मद्य के लिये विवश हैं इसके हो सकता है कि कहीं कोई पुस्तक नीची क बिना उनका जीवन ही नहीं टिक सकता वे अप- में पढ़ा दी गई हो और दूसरे विद्यापीठ में ऊं वाद रूपमें कुछ सेवन कर सकते हैं । वे इसे कक्षा में भी न पढ़ाई हो पर वहां कोई दस व्यसन न बनायेंगे इन्द्रिय लोलुपता के कारण योग्यता कराई गई हो। तब वहां किसी एक कित इसका सेवन न करेंगे । पर ऐसी आवश्यकता को कसौटी बनाकर ही विद्वान अविद्वान शीतकटिबंध तथा मरुस्थल आदि के खास खास परीक्षा नहीं की जा सकती। इसी प्रकार सि स्थानों पर ही हो सकती है वहीं इसके अपवाद मांस-भक्षण आदि को लेकर ही योगी अर्य का विचार किया जा सकता है । जहां अन्न सलभ संयमी असंयमी की परीक्षा नहीं की जा सकती