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कल्याणपथ
कृतज्ञतापूर्वक दान देना प्रत्युपकार दान है । यद्यपि यह एक प्रकार का विनियम है पर साधारण विनिमय से इसलिये ऊँचा है कि इस में उपकार से प्रत्युपकार की मात्रा अधिक रहती है । यह आवश्यक दान है ।
७- निरपेक्ष दान - जहाँ नाम वगैरह की मुख्यता न रक्खी जाय, न नाम वगैरह की ऐसी कोई शर्त रक्खी जाय, जनहित का ही विचार हो, वहां दान निरपेक्ष दान कहा जाता है । कोई संस्था नियमानुसार प्राप्तिस्वीकार में नाम छापे हिसाब में नाम दिखावे, या दान के बहुत वर्षों बाद अपनी प्रेरणा के बिना अपने दान के स्मारक के रूप में अपना नाम दे तो यह बात दूमरी है। इससे निरपेक्ष दान को कोई धक्का नहीं लगता अर्थात् वह भुक्तदान नहीं बन जाता |
८ अनामदान - जिस में दान तो हो पर दान का नाम न हो अर्थात् व्यवहार में उसे दान न कहते हों तो वह अनाम दान है। जैसे गुरवि या बेकार लोगों को रोटी मिले इसलिये उनके हाथ की बनाई हुई चीज खरीदना, जब कि बाज़ार में उससे अच्छी या सस्ती चीज़ भले ही मिलती हों । दो आने ग़ज मिल का कपड़ा बाज़ार मे मिलता हो और उससे कुछ ख़राब खादी चार आना गज़ मिलती हो तो एक गज़ खादी पहिनने से हम करीब दो आने का दाह करेंगे पर न तो लेने वाला इसे दान समझेगा क्योंकि उसने मजदूरी काफी की थी और न दुनिया इसे दान समझेगी, इसप्रकार दान का नाम तो न होगा पर दान हो जायगा । यह अनाम दान है । यह एक व्यापक और अच्छा दान है ।
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पता न लगे, अथवा बिलकुल पता न लगे अथवा लेने वाले को भी पता न लगे, यह गुप्तदान है । इस दान में निर्मोहता ऊँचे दर्जे की होती है इसलिये यह प्रदान हैं ।
९ - गुप्तदान - इस प्रकार से दान देना कि दुनिया को जितना पता लगना चाहिये उतना
ज-प्रेरणा - जो दान अपनी समझदारी मे बिना किसी की प्रेरणा के दिया जाता है वही उत्तम दान है। जो साधारण सूचना पाकर दिया जाता है या संकेत से समझकर दिया जाता है वह भी अच्छा है । जो अनेक बार माँगने
और विशेष अनुरोध करने पर दिया जाता है वह मध्यम दान है जिसमें अनुरोध यहाँ तक बढ़ जाता है कि अनुरोध को न मानने में लज्जा मालूम होने का डर आजाता है वह जघन्य दान है।
दान जहाँ तक बन सके अपनी इच्छा से और बिना माँगे देना चाहिये। हां, 'यहाँ ज़रूरत हैं कि नहीं ' इसकी सूचना की बाट देखना ' कोई बुरी बात नहीं है ।
दान देने में हम जितना दूसरों को परिश्रम कराते हैं दान का मूल्य उतना ही कम हो जाता
। इस बात का हिसाब लगाकर भी हम समझ सकते हैं । मानलो एक संस्था को हमने सौ रुपये दिये उसके लिये कई बार उस संस्था को पत्र डालना पड़ा एक दो बार आदमी भेजना पड़ा आपके किसी मित्र से अनुरोध कराना पड़ा ! संस्थाको सौ रुपये मिले पर आपके मित्र का अहसान दो चार पत्रों का डाक खर्च, उनकी लिखाई की महनत आने जाने का ख़र्च या कष्ट बार बार माँगने का संकोच सब मिलकर जो खर्च हुआ उसमें आधे से अधिक दान का मूल्य चला गया । इसलिये हमारे दान का मूल्य भी आधे से कम रह गया । इसलिये जहां तक बने