Book Title: Satyamrut Achar Kand
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 211
________________ ४१७ 1 सत्यामृत बड़ी अवस्था में शिष्टाचार सीखने का होती है कि लोग उससे चौकले हैं। यह अच्छा तरीका यह है कि दूसरे के उठने बैठने अपने व्यवहार से निर्दोष आदमियों के मन में आदि का निरीक्षण किया जाय । क्यों कि भय पैदा नहीं होने देता, उन्हें उससे धोका खा शिष्टाचार कहकर करांन में उस की कीमत घट जाने की शंका नहीं होती । ऐसे मनुष्य का लोग जाती है। शिष्य को गुरु के सामने कैसे बैठना आदर कम ज्यादह कैसा भी करें पर उसमे चाहिये यह बात गुर को सिखाना पड़े तो इस में प्रेम करते हैं । गुरु के गौरव को धक्का लगता है मातापिता सरलजीवन बिताने से मनुष्य के मन पर को भी इस बात के सिखाने में संकोच होगा कि और स्नायुओंपर जोर नहीं पड़ता जब कि कुटिल सुबह उठकर माँ बाप को प्रणाम करना चाहिये। जीवन बिताने में काफी जोर पड़ता है जिसके विषय में शिष्टाचार दिखाना है उसी से उसे हर समय चाकना रहना पड़ता है हर समय उसकी शिक्षा मिलना कठिन है इसलिये यह डरता सा रहता है। बात अपनी बुद्धि से विचार कर या इधर उधर हमसे पापी डरते रहें अथवा हमारी किसी देखकर सीखना चाहिये । आवश्यक दिनचर्या के कारण किसी को अटपटासब से अच्छी बात यह है कि जैसा पन सा मालूम हो तो बात दूसरी है पर साधारणतः शिष्टाचार हो वैसा ही मन का भाव हो । पर अपना जीवन ऐमा बनाना चाहिये जिस से लोग अगर किसी कारण से मन का भाव बदल जाय निर्भय रहें, और नि:संकोच होकर अपना दुःख तो जहाँ तक सम्भव हो और जहाँ तक उचित हो वहाँ तक पहिले से चले आये हुये शिष्टाचार सुख कहसकें। को निभाते रहना चाहिये। ५-कोमलता-मन में वाणी में और ४-सरलता- विचार और सभ्य व्यवहार व्यवहार में प्रेम छलकता सा मालूम हो इसका की एकता का नाम सरलता है। मुँह में राम नाम कोमलता है । दूसरे का दुःख देखकर दुःखी बगल में छुरी की कहावत से उल्टा जीवन होजाना, बहुत जरूरी होने के सिवाय अपने बिताने की कोशिश करना सरलता का अभ्यास शब्दों में और स्वर में कठोरता न आने देना है। कहने को विचार और दुर्व्यवहार की एकता कोमलता है । बहुत से लोगों के बोलने का या भी सरलता है, मन में भी वेर रक्खा और मुँह कोई काम कराने का ढंग ऐसा होता है कि से भी गालियाँ बकीं यह भी एक तरह की उनके शब्द सिरपर डंडे से बैठते हैं जब कि सरलता है पर इस सरलता को सरलता नहीं बहुत से लोग आज्ञा भी देते हैं तो उस में शब्द कहते क्योकि यह दर्गण हे पाप है, यहाँ सरलता- का विन्यास और स्वर ऐसा रहता है कि न तो रूप गुण से मतलब है। उस में दीनता होती है न कठोरता, यह कोमलता सरल मनुष्य के जीवन में न तो ऐसा की निशानी है । अटपटापन हे.ता है कि सम्पर्क में आनवाले भठे दिलसे दिल मिलाने के लिये, दूसरों का आदमी भी घबराते रहे, न उसमें ऐसी वंचकता दुःख घटाने के लिये, अनावश्यक भय अपमान

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