Book Title: Satyamrut Achar Kand
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 206
________________ कल्याणपथ दान के लिये अवसर का सदा खयाल रखना चाहिये इस के लिये विवेक और सतर्कता की ज़रूरत है । जैसे बीज बोने में हमें अक्सर का ख़याल रखना पड़ता है उसी प्रकार दान में भी रखना चाहिये | ङ - वस्तु दान में वस्तु का विचार भी विचारणीय हैं। कब कहां किस वस्तु का महत्व है इसका विवेक रखकर दान देना चाहिये एक साधु घर आया उसे आदर प्रेम से भोजन करा दिया । सम्भव है इस में चार आने का ही खर्च हो पर उसकी कीमत वह जायगी इस के बदले एक रुपया देकर उसे भूख विदा करने से दान की कीमत कम होगी । इसमें भी पूरे विवेक की ज़रूरत है | कही भोजन की कीमत ज्यादा है कहीं रुपयों की, कहीं और चीन की । देशकाल पात्र देखकर वस्तु की उपयोगिता का विचार करे फिर दान दे 1 वस्तु के विचार के कारण कहीं कहीं रुपयों पैसों की जगह कुछ कपड़ा आदि देने का रिवाज बन जाता है। कुछ समय तक तो ठीक, बाद में वह रिवाज विवेकशून्य होने से निरर्थक होजाता है । ऐसी चीज़ देना जिसका उसके यहां उपयोग न हो; तुन आठ आने में लाकर दान दो वह पांच छः आने में बाज़ार में बेचता फिरे, इसकी अपेक्षा आठ आने पैसे देना ही अच्छा । नियम कुछ नहीं बनाया जा सकता, विवेक इसका नियम है । कहाँ किम चीज़ का क्या उपयोगिता है इसका विचार करके दान देना चाहिये | [ ४१२ पांच रुपया दे और एक धनी आदमी पांच रुपया दे इसमें बहुत अन्तर हैं, गरीब आदमी के पांच रुपये के साथ जितना दिल है अमीर आदमी के पांच रुपये के साथ उतना दिल नहीं है, गरीब आदमी अपनी जायदाद का जितना हिस्सा दे रहा है अमीर उतना नहीं दे रहा है इसलिये अमीर के पांच रुपयों की अपेक्षा गरीब के पांच रुपयों का महत्त्व अधिक है । इसीप्रकार और भी दाता की विशेषताएँ हो सकती है । दाता की परिस्थिति दान देने योग्य जितनी कम होगी दान का मूल्य उतना ही अधिक बढ़ेगा। इसके सिवाय और भी कारण हो सकत हैं जिनसे दाता के कारण दान का महत्त्व बढ़ जाय । दाता ऐसा प्रसिद्ध व्यक्ति हो जिसके देने से और दूसरे आदमी दान देने लगें तो इस दृष्टि से भी दाता की विशेषता से दान की विशेषता सिद्ध होगी । च - दाता - दाता के अनुसार भी दान का महत्व घटता बढ़ता है। एक गरीब आदमी छः ध्येय-दान की विशेषता बताने वाला यह बहुत महत्वपूर्ण कारण है । ध्येय की खराबी से दान अदान या कुदान हो जाता है। कोई विश्व कल्याण के लिये देता है कोई यश के लिये देता है कोई किसी तरह का स्वार्थ सिद्ध करने के लिये देता है, कोई इसलिये देता है कि डर के मारे उसे देना पड़ रहा है, ध्येय के भेद से इन सब दानों में अन्तर है । विश्वकल्याण के ध्येय से जो दान दिया जाता है वही सच्चा दान है । दान देने में जितने अंश में यश की आकांक्षा है उतने ही अंश में दान की कमी है । वह रोज़गार है । यह ठीक है कि दानी को यश मिलना चाहिये पर दानी को भी यश से इतना निरपेक्ष अवश्य रहना चाहिये कि दान का जहां अधिक उपयोग हो जहां अधिक जरूरत हो लेनेवाला |

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