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सत्यामृत
न बनाना चाहिय । जो दल बनाओ वे संघर्ष के बातों का विचार करते हुये मित्रवर्ग को बढ़ाने की समय तक के लिये ही हो अथवा ऐसे हैं। जिनमें कोशिश करना चाहिये । जातिभेद मिट जाने पर इच्छा करने से कोई भी इस दल से उस दलने मित्रवर्ग बढ़ जायगा परिचय का क्षेत्र भी बढ़ सरलत से जासके।
जायगा, विजातीय होने से मित्रता या परिचय नप्र-अब हमें परदेश में कोई अपनी जातिका फीका न होगा। इसलिये परंदश में भी हमें मित्र अपने प्रान्त का आदनी मिल जाता है तब हमें और परिचित अधिक मात्रा में मिलगे । बेहद खुशी होती है अयाचित सेवा भी मिल जाती समाज सुधारक-बनने के लिए निम्नहै जातिमममात्र होने पर हमारी यह प्रसन्नता लिग्वित सचनाएं उपयोगी हैं। नष्ट हो जायगी।
१-सुव्यवस्था और नैतिकता में अगर बाधा न उत्तर -अपने प्रेम और विश्व प्रेम के बीच पड़ती हो तो व्यक्ति के अधिकारों में बाधा न डालना। में मनुष्य कम ज्यादा प्रेम के कई घरे बनालता है। २.---लैगिक अहंकार (पुरुषत्व का घमंड) दूर कुटुम्बियों का, परिचितों का, मुहल्ले वालों का करना और ज़रूरी समभाव का सिद्धान्त स्वीकार . गांववालों का प्रान्त वालों का देश का आदि । इस करना । प्रकार के घरे बनाने में कोई आपत्ति नहीं है ३ - कोई रिवाज पुगने ममय मे चला आरहा या वे क्षन्तव्य है पर जब वह जाति के नाम का है इसलिये वह अच्छा है, यह भ्रन निकाल देना। घेग बनाता है और उसके आगे मित्रवर्ग, परिचित देश काल को देखते हुए उसके कल्याणकर वर्ग आदि दूर का बनजाता है तब वह मित्रता अकल्याणकर होने का विचार करना । संयम उपकार आदि की अवहेलना करता है।
-जे, नया है वह अच्छा है यह भ्रम जाति की एक ऐसी कल्पना है जिसका सम्बन्ध भी निकाल देना उसका विचार भी कल्याणकर जन्म से मान लिया गया है और जिसका भलाई
अकल्याणकर होने की दृष्टि से करना । बुराई गुण दोष से कोई सम्बन्ध नहीं है। ऐसे बनियाद और दूसरों के साथ परायापन बनाने
५-रिवाजों का इतिहास ढूँढना और वे बाल धेरे को कदापि स्वीकार न करना चाहिये ।
जिस परिस्थिति में बने थे वह परिस्थिति आज है जो उपकारी है सद्गुणी है मित्र है परिचित है या नहीं इस बात का विचार करना । उसे प्रेम के घेरे की एक रेखा बनाओ, कल्पित ६-रीति रिवाजों के नामपर जो जितना जाति को नहीं।
अधिक खर्च करना चाहे करे, पुर जितना खर्च
साधारण से साधारण परिस्थिति का आदमी न । देश और प्रान्त के नाम के घेरे भी मर्यादित
जुटा सके उसे अनिवार्य न बनाना । रहना चाहिये । वे इतने जोरदार न हों कि हम दूसरे प्रान्त या दशमें जाकर भी वहां के निवासियों ७-रीतिरिवाजों के पालन में गरीबी के मे मिल न सके ण दसरे प्रान्त के लोगों के कारण कम खर्च करने वाले की व्यक्त या अव्यक्त अपने देश में भाने पर उन्हें अपना न सके । इन रूप में निन्दा न करना ।