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सत्यामृत
छाया का कोई विशेष असर नहीं होता । जहां किसी प्राणी को जला जाय या गांव में घरों को हमारे शिष्टाचार की सफलता न होती हो वहां आग लगा जाय तो फूस की आग बुझ जाने पर यह देखना चाहिये कि हममें कषाय-किट तो दूसरी जगह लगी आग न बुझेगी । यही कारण नहीं है। अगर कषाय किट्ट हो तो शिष्टाचार की है कि व्यवहार में लोग कपाय-किट्ट वाले से निरर्थकता पर खेद न करके कपायकिट्ट को जितना डरते हैं, कषाय-कालिमा वाले से भी उतना दूर करने का प्रयत्न करना चाहिये । जीर्णज्वर ही अथवा उतने से भी अधिक डरते हैं। की तरह कापाय-किट जीवन की बहुत बर्बादी कषायकिट्ट से तो असंयम सिद्ध होता ही करता है।
है, पर कपाय-कालिमा भी अगर अधिक कषाय-कालिमा एक प्रकार का आवेग है। परिमाण में हो तो उससे भी असंयम सिद्ध होता है। कालिमा किट्ट की तरह हानिकर नहीं है इसमें किटटकालिमा के निमित्त से जीवन के पांच भेद किट्ट की अपेक्षा असंयम कम रहता है पर निबे- होते हैं-१. महापापी, २. पापी, ३ अर्धपापी, लता अधिक रहती है। आवेग मानसिक निबेलता ४. पुण्यात्मा और ५. शुद्ध पुण्यात्मा । का परिणाम है।
१. महापापी- जिसमें किट्ट और कषाय कालिमा किट्ट से कम खराब है इसका यह दोनों बहुत मात्रा में हों । मतलब नहीं है कि उसपर उपेक्षा करना चाहिये। कभी कभी कालिमा किट्ट से भी अधिक भयंकर
२. पापी- जिसमें किट्ट बहुत हो और हो जाती है । एक आदमी साधारणतः शान्त
कालिमा थोड़ी हो। और सरल है, समझाने से अपनी भूल जल्दी
३. अर्धपापी- जिसमें किट्ट थोड़ी हो पर मान लेता है, पछताता भी है पर कषाय का अव
कालिमा बहुत हो। सर आने पर वह अपने को नहीं मम्हाल पाता ।
४. पुण्यात्म - जिसमें किट्ट न हो या एम आदमी क्रोध आने पर किसी का खन न होने के बराबर हो, कालिमा भी थोड़ी हो। भी कर सकता है, मारपीट कर सकता है ५. शुद्ध पुण्यात्मा- दोनों बिलकुल न कठोर से कठोर और विषैले वचन भी बाल हों । यह मंयमी जीवन का आदर्श है । बड़े बड़े सकता है, निन्दा कर सकता है, अपमान कर महात्मा भी इस श्रेणी में नहीं आ पाते । फिर सकता है, पर की चीजों को बर्बादी कर सकता भी इसे कठिन से कठिन ही कहा जा सकता है है, अपना सिर फोड़ सकता है, किसी के शरीर असम्भव नहीं । या मन में ऐसे घाव कर सकता है जिनमें कभी किट्ट और कालिमा की तरतमता से इन मझ न आवे, ऐसा आदमी अगर थोड़ी देर में पांच के असंख्यात भेद होते हैं । शांत भी हो जाय तो भी आवेग में जो अपनी प्रश्न- जिसमें किट्ट अधिक है पर या दूसरों की हानि कर चुका है उसे वापिस कालिमा थोड़ी है उसे संयमो क्यों न कहा नहीं ला सकता। फस की आग स्वयं जल्दी बुझ जाय ! कपाय को भीतर दबाये रखने के लिये अपनी पर अपनी अणिक यालाओं से अगर वह संयम और मनोबल की आवश्यकता होती है।