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भगवती के अंग
हैं ! यदि हां, तो हिन्दूधर्म रिलिज की अच्छे रास्ते चलावे और पुत्र को अधिकार है कि निन्दा क्यों करता है ?
अगर पिता का रास्ता ठीक न मालूम हो तो पिता
- प्रतारणा देने का अधिकार है उतनी उत्तर-
निकी अगर यही मंशा होती तो उसकी निन्दा न की जाती उसने तो
प्रतारणा विनय से सहन करे और अपने रास्ते
चले। सा , की दृष्टि मे जिधर अच्छाई कारका प्रल्हाद का तक्षण ही किया था। उसने जो ईश्वर का नाम लेने की सख्त मनाई
हांगी उधर निर्दोषता होगी। की थी और अपनी अज्ञा न मनी जाने पर
प्रश्न- पिता पालक है इसलिये उसे अमुक उसे मार डालने तक के लिये तैयार हो गया था।
अंश में प्रतारणा का अधिकार है पर पति-पत्नी इसमें सिंक अकार था । उसमें अगर प्रल्हाद
आदि के मामले में कमा किया जाय ! अथवा के वर्धन का भाव होता तो वह ईश्वरभक्ति के
किसी के मातापिता नासमझ और रूढ़ि के लिये अनुक समय देकर कहता कि बाकी समय
गुलाम हो तो वह क्या करे वह उन्हें मार्ग पर तझे राजकाज में लगाना चाहिये। फिर अगर
लाने के लिये कटुशब्द आदि के द्वारा प्राणघात असद न मानता तो हिरण्यकशिपु की मोदित
करे तो क्या यह वर्धक घात : " ! प्रतारणा उचित कही जा सकती। पर इस कार्य उत्तर--वर्धन के लिये धान उतना ही करना के लिये प्राणनाश की प्रतारणा तो किसी तरह चाहिये जितना औचित्य और अधिकार के भीतर उचित नहीं कही जा सकती अधिक से अधिक
हो । माताप्तिा हा । माता
आदि गुरुजनों का अपमान वह इतना ही कह सकता था कि मैं ऐभे अयोग्य
न करना चाहिये उन की गलनी सुधारना हो ता पुत्र का पालन नहीं कर सकता इसलिय अलग अवसर देखकर नम्रता से ही सूचित करना कर र णनःश तक के लिये तैयार चारिय। पतिपत्नी में तो मित्रता का व्यवहार ६। जाना हिरण्यकशि का तीन कर था। ही उचित है। अगर उनमें से किसी में विचार. इसलिये उसने जो घात किये वे तक्षक थे।
विवेक की योग्यता अधिक है तो वह दसरे को
जरा दृढ़ता से समझा सकता है पर एक दूसरे प्रश्न- रूढ़ि 1 उपासक है पुत्र सुधा- के जीवन सम्बन्धी उत्तरदायित्व से छुट्टी नहीं रक है इसलिये पिता उसकी ताड़ना करता है पा सकता । पत्नी मेरे विचारों के अनुसार नहीं वह सोचता है कि रूढ़ि पर चलाने से ही उस है इसलिये मैं उसके खाने कपड़े का प्रबन्ध न की वृद्धि होगी । इने क्या कहा जाय ! करूं, बीमारी में सेवा न करूं आदि बातें अनु
उत्तर-रूढ़ि के नाम पर स्वच्छन्दगा दुरा- चित है यही बात पति के विस में पत्नी के चार आदि का विरोध भी किया जा सकता लिये है। इस प्रकार अपने कर्तव्य को पूरा और सुधार के नाम पर स्वच्छंदता का परिचय करते हुए अ.वयन नुसार अधिक से अधिक भी दिया जा सकता है इसलिये जिस ताफ जोर डाला जा सकता है पर एक दूसरे पर हाय विवेक हो उसी तरफ न्याय है । पिता को अधि- चलाना या मर्मभेदी आलियाँ आदि देना अनुचित कार है कि वह आने पेटेको अपनी समझके अनसार है। अपनी और उसकी भलाई के लिये सौम्य