Book Title: Satyamrut Achar Kand
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 169
________________ ३७५ ] सत्यामृत लगते हैं उनका भिक्षा माँगना भी मुफ्तखोरी है भाट थी, इसलिये दीनान जी हाथी से उतरे और दुर्जन हैं। भिक्षुकों में खड़े हो गये, सेठ हाथ जोड़ कर प्रश्न--वर्ण व्यवस्था के युग में ब्राह्मण प्रायः । बोला-अन्नदाता, आप यह क्या करते हैं ? दीवान भिक्षा मांगकर अपना निर्वाह करता था यह व्यवस्था ने कहा-मेरी जाति भाट है इसलिय में अपना हक समाज ने ही नियत कर दी थी, जब यह दुरर्जन मांगता हूं । दीवान के इस जाति प्रेम से सभी है तब समाज ने ऐसी व्यवस्था क्यों की ! को प्रसन्नता हुई । क्या आप इसे दुरर्जन कहेंगे ? उत्ता-वर्णव्यवस्था के युग में ब्राह्मण और उत्तर--दीवान में जातिप्रेम था और इतना शूद्र के लिये जो भिक्षा माँगने की व्यवस्था की अधिक था कि उसने नम्रता का उत्कट रूप गई थी वह दुर्जन रूप नहीं थी । वह तो विनि- धारण कर लिया और प्रशंसा पाई, यह सब ठीक मय अर्थात् लेन देन का एक तरीका था । ब्राह्मण था पर इसको ठीक होने का कारण दीवान का समाज की बौद्धिक-सेवा विना वेतन के करता था जाति-प्रेम और विनय है दुरजेन नई रर्जन नहीं । वास्तव में समाज उसके बदले में भिक्षा देता था। यह अर्जन के लिये दीवान ने भिक्षा मांगी भी नहीं विनिमय का एक ढंग हुआ दुरर्जन नहीं । इसी थी इसलिये वह अजनरूप ही नहीं थी फिर दुरर्जन तरह बहुत से शूद्रों की सेवाओं के बदले में भी तो क्या होती ! पर अगर उसने अर्जन की दृष्टि भिक्षा के तरीके से विनिमय किया जाता था। से एसा किया हो तो दुरर्जन ही कहा जायगा हां, वर्णव्यवस्था के नष्ट हो जाने पर और क्योंकि भिक्षा का उसे कोई अधिकार नहीं था । नौकरी आदि आजीविका के कार्य में लग जाने अगर वहां के लोगों ने इस तत्त्व को समझा होता पर जो भिक्षा आदि लेते हैं वे अवश्य दुर्जन तो यह घटना कुछ और लम्बी होती । दूसरे दिन करते हैं । जो ब्राह्मण अध्यापक हैं वेतन लेते हैं लोग उसके यहां गये होते और उनने कहा होताया और कोई ऐसा धंधा करते हैं जिसमें उनको सरकार, आप ने कल जातिप्रेम और नम्रता का जीविका मिलती है फिर भी ब्राह्मणत्व के नाते जो परिचय दिया है वह आप सरीखे महापुरुषों भिक्षावृत्ति भी करते हैं वे दुरर्जन करते हैं। के योग्य है पर इस कार्य में जो धर्म का भंग हुआ, जब वर्णव्यवस्था नहीं रही तब उसके आश्रित आशा है उसकी आप रक्षा करेंगे। भिक्षावृत्ति भी न रहना चाहिये । दीवान कहता-धर्मभंग हुआ हो तो मैं प्रश्न-आज ब्राह्मण को नौकरी लगी है इस- अवश्य प्रायश्चित्त करूंगा कृपाकर आप बतलावें । लिये भिक्षावृत्ति वह छोड़ रहा है कल नौकरी लोग कहते-मनुष्य को किसी एक ही वर्ण छट जाय तो क्या करे । भिक्षा मांगने का पुस्तैनी की आजीविका करना चाहिये अगर कोई आदमी धंधा छोडने में कभी न कभी संकट आ सकता वेतन लेकर कोई जीविका करता है और जीविका है इसलिये क्यों न वह हर हालत में भिक्षा मांगे? सम्बन्धी अपने जातीय अधिकार के अनुसार भिक्षा एक बार एक रियासत के दीवान हाथी पर चदे आदि मैं गत: है तब दो में से उसे किसी एक जीविका चले जाते थे रास्ते में एक सेठ के यहां भाटों को का त्याग करना पड़ता है । इसलिये कल आपने कपड़ा दिया जा रहा था, दीवान की जाति भी भिक्षा मांगी उसके लिये आपको दीवानगिरी

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