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रहते हैं अपनी अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करते हैं योग्यता और सेवा के अनुसार उनका सन्मान भी होता है और उसी के अनुसार उनकी प्रतिसेवा भी होती है, इतना होने पर भी कुटुम्ब के प्रत्येक आदमी को कुटुम्ब की आर्थिक परिस्थिति के अनुरूप भरपेट भोजन और वस्त्रादि मिलते हैं । जैसा यह कुटुम्ब के लिये है
सत्यामृत
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उसी प्रकार समाज के लिये भी है अतिसंग्रह करते हैं वे समाज के इस मूल तत्त्व का नाश करते हैं, वे समाज के अन्य सदस्यों को कंगाल बनाते हैं ।
जो लोग
प्रश्न - खाद्य सामग्री या उपयोग की सामग्री का संग्रह करना बुरा है पर सोना चांदी नोट आदि के संग्रह करने में क्या बुराई है ?
उत्तर-सामग्री के जो साधन हैं उनका संग्रह करना या सामग्री का संग्रह करना एक ही बात है । क्योंकि रुपया नोट आदि का संग्रह करने से वे दूसरों को नहीं मिल पाते इसलिये बेकारी और गरीबी बढ़ती है। इससे समाज का विकास भी रुकता है । हमारे पास जो रुपया हैं वह अगर
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हम किसी काम में लगा दें जिसने मज़दूरों को मज़दूरी मिले तो उन मज़दूरों की मिहनत से समाज में कोई 3 कोई चीज़ तैयार होगी ही। शिक्षक की मिहनत से ज्ञान का प्रसार होगा, कलाविदों की मिहनत से कला का विकास होगा या कला से लोग लाभ उठवेंगे इत्यादि कोई न कोई काम होगा ही । संग्रह करने से वह धन तिजोड़ी में पड़ा पड़ा मड़ेगा, बेकारी के कारण दूसरे भूखों मरेंगे, विनिमय कम होने से एक दूसरे का उपकार कम होगा साधन सामग्री भी कम तैयार ोगी इसलिये अतिग्रह न करना चाहिये ।
प्रश्न- अतिग्रह की मर्यादा क्या ? यों तो सौ पचास रुपया अतिग्रह कहे जा सकते हैं यों लाखों रुपये भी अतिग्रह नहीं कहे जा सकते | तब अतिग्रह किसे कहा जाय? क्या सबके लिये अतिग्रह एक सरीखा होगा?
उत्तर
नीचे लिखी संपत्तिको रखना अतिग्रह न कहलायेगा |
[१] जीवन के लिये जो चीजें कम से कम जरुरी हैं उन्हें अतिग्रह नहीं कहते जैसे भरपेट रोटी पानी, रहने के लिये साधारण घर, पहिरने के लिये साधारण कपड़े, आदि ।
२] जीवन निर्वाह की सामग्री पाने के लिये जो ज़रूरी सामान हो उसका रखना भी अतिग्रह नहीं है । जैसे खेती के औजार तथा मज़दूरी के औजार आदि ।
[३] देश की साम्पत्तिक हात जैसी हो और आमदनी का जा औनत हो उतने हिस्स तक सम्पत्ति रखना अतिग्रह नहीं है।
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| ४ ] अगर कोई विशेष सेवा करता हो और उस सेवा के लिये विशेष साधनों की ज़रूरत हो तो उनका रखना भी अतिग्रह न कहलायगा । जैसे एक डाक्टर को या एक वैज्ञानिक को हज़ारों रुपये के आजार रखन पड़े एक साहित्यिक को या इतिहास शोधक को एक पुस्तकालय रखना पड़े आदि । साधकता की दृष्टि से ही इसे अतिग्रह न कहेंगे । अगर वह संग्रह की या अपनापन साबित करने की दृष्टिसे रक्खेगा तो अतिग्रह होयग ।
[५] एक आदमी इसलिये धनसंग्रह कर रहा है कि भविष्य में वह समाज की ऐसी सेवा करना चाहता है जिसके बदले में समाज उसे जीवन निर्वाह के लिये कुछ न देना चाहेगा और