________________
i
भगवती के उपांग
शायद कुछ समय तक सेवा भी पसन्द न करेगा, अपने अज्ञान के कारण उसका विरोध भी करेगा जैसा म. सुकरात आदि का किया गया था तो वह उस समय के लिये कुछ संग्रह करना चाहे तो वह अतिग्रह न कहलायगा ।
(३) अपनी परिस्थिति के अनुरूप सन्तान के पालन पोषण के लिये धन रखना भी अतिग्रह नहीं है। हां, सन्तान ज़िन्दगी भर चैन से खाती रहे और उसे कुछ न करना पड़े इस आशय से संग्रह करना या उतनी सम्पत्ति संग्रह करना अतिप्रद है ।
अतिग्रह की इन मर्यादाओं को समझ कर अतिग्रह का त्याग करके मनुष्य को निरतिग्रह का पालन करना चाहिये ।
प्रश्न- अगर अतिमह न हों तो संसार का 'विकास रुक जाय, दुनिया में न तो कोई गरीब रहे न अमीर । गरीबों का न रहना तो ठीक है पर अमीरों के न रहने से बड़ी हानि होगी । अभी तो ज़रूरत पर अमीरों से दान में हजारों लाखों मिल जाते हैं पर जब अमीर न रहेंगे तब कौन देगा ! फिर कहां से ये शिक्षण संस्थाएं चलेंगी ? कहां से धर्मशालाएँ बनेंगी ? कहां से मुफ्ती औषधालय खुलेंगे ? कुछ भी तो न हो सकेगा। वर्षा के पानी का अगर जलाशयों में अतिसंग्रह न हो पाय, ब जगह फैल जाय तो बरसात के बाद लोगों को पानी मिलना असम्भव हो जाय, इसलिये जल के समान धन का अतिसंग्रह भी ज़रूरी मालूम होता है ।
उत्तर - पृथ्वी पर जो जलाशय दिखाई देते हैं, वे इसीलिये बन सके हैं कि वर्षा का पानी छोटे छोटे हजारों लाखों श्रोत के रूपमें धरातल के नीचे बह रहा है इन्हीं छोटे छोटे श्रोतों के पुण्य
[ ३८०
से हमारे कुएं और तालाब आबाद हैं। अगर ये श्रोत न होते, उनका पानी भी किसी एक जगह संग्रहांत हो गया होता तो आज जलचरों के सिवाय दूसरे प्राणी दिखाई भी न देते । कुएं तालाब वगैरह अतिसंग्रह के परिणाम नहीं किन्तु अतिसंग्रह के अभाव के परिणाम हैं। कुएं तालाब सरीखे सार्वजनिक संग्रह अतिग्रह के अभाव में समाज में बनाये जा सकेंगे, बनाये जाते हैं ।
लाखों और करोड़ो का ख़र्च करनेवाली सरकार कैसे बन जाती है ! एक एक किसान की मुट्टी के दाने लेकर ही तो इतनी बड़ी सरकार बनती है। सरकार को जाने दीजिये, ऐसे ऐसे मन्दिर आदि धर्मस्थान है जहां यात्री लोग पैसा पैसा चढ़ाते हैं और इसी के बल पर उनके पोस लाखों की सम्पत्ति है, आज अमीर लाखों देते हैं पर इस इकतरफ़ी अमीरी की बदौलत करोड़ों गरीब ऐसे भी बन जाते हैं जो एक एक पैसा नहीं दे पाते, वे अगर दे पाते तो लाखों से ज्यादा दे डालते । और लाखों के लाख पैसों का जो मूल्य है वह एक के लाख रुपयों का नहीं है, क्योंकि एक अमीर के पास रुपये लाख हो सकते हैं पर दिल तो एक ही हो सकता है, इसलिये लाख रुपयों के साथ एक ही दिल आयेगा से भी सम्भवतः अहंकार और महत्त्वाकांक्षा यशालिप्सा आदि से सना हुआ, जब कि लाख पैसों के साथ लाख दिल आयेंगे, और आयेंगे भक्ति श्रद्धा से सने हुए । लाख दिलों की कीमत लाख रुपयों से कई गुणी है । इसलिये यह सोचना कि अतिग्रह के अभाव में सार्वजनिक सेवा के लिए धन न मिलेगा, भूल है ।
दूसरी बात यह है कि सार्वजनिक सेवा सरकार का काम है । अतिग्रह के अभाव में न