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विदेश माधना-तप
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सुनना बहुत साधारण है, पर पूछने का बहुत महत्व हैं । जिसे पूछना नहीं समझ लो अभी उस ज्ञान मिला नहीं है। से पता लगता है कि इसने किसी चीज को समझा है या समझने की अच्छी कोशिश कर रहा है।
पूछने
३ -- पढ़ना - ज्ञान प्राप्ति के लिये पढ़ना अर्थात् अक्षर या वर्ण मूर्त्ति के द्वारा दूसरे के विचार जानना और उनसे लाभ उठाना पठन तप है । श्रवण तप के समान यह भी तप है पर सिर्फ दिल बहलाने के लिये कथा साहित्य लेकर बैठ जाना तप नहीं है यह काम है जोकि सुनन के समान पुण्य भी हो सकता है और पाप भी ।
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यो कथा साहित्य का पढ़ना कुछ बुरा नहीं। है उससे भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है, जीवन के अन्य कर्तव्यों का पूरा करने के बाद कथा-साहित्य पढ़ना भी समय का सदुपयोग है " और उससे कुछ सीखा जाय सीखने के उद्देश्य से पढ़ा जाय तो यह तप भी है ।
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४ -- विस्तारण – ज्ञान का विस्तार करना विस्तारण तप है, कोई बात पढ़कर सुनाना, लिख कर फैल ना आदि विस्तारण तप है । महात्माओं के उपदेशों का संग्रह करना आदि भी विस्तारण • तप है । सिर्फ आजीविका के लिये काम किये जायँ तो तप नहीं हैं पर लोकहित की मुख्यता से किये जायँ तो तप हैं ।
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हां, विस्तारण निरर्थक हो, नाम के लिये पिष्टपेषण आदि करके कागज काला किया गया हो तो यह विस्तारण तप नहीं है ।
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५-- विचारणा - चिन्तन करना, पाये हुए • ज्ञान का अनुभव और तर्क के द्वारा परीक्षण करना आदि भी तप है । इसके द्वारा ज्ञान अन्तर्मुख
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होता है । चिन्तन के द्वारा ज्ञान अपनी चीज़ बन जाता है । चिन्तन के बिना मनुष्य एक तरह की पुस्तक बन कर रह जाता है ।
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६- आत्मनिरीक्षण पाय हुए ज्ञान के आधार पर अपने को देखना, निष्पक्षता से अपने गुण दोषों का विचार करना आत्मनिरीक्षण है भगवती अहिंसा की साधना के लिये आत्मनिरीक्षण न किया जाय तब तक आत्मकल्याण की दृष्टि से ज्ञान निरर्थक ही है,
७- निर्माण - आत्मनिरीक्षण के बाद जो जगहित के लिये ग्रंथरचना आदि की जाती है वह निर्माण तप हैं । यद्यपि ग्रंथनिर्माण आत्मनिरीक्षण के पहले भी होता है पर वास्तव में वह निर्माण नहीं है । वह तो इधर उधर का संग्रह है, वह उसकी चीज़ नहीं है जिससे वह निर्माण कहा जा सके। हां, वह निरर्थक नहीं है समाज के लिये उसका भी उपयोग हो सकता है पर उसे निर्माण न कहेंगे, विस्तारण करेंगे । ऐसे भी लेखक होते तो बड़े बड़े पोथे लिख
जाते हैं, दूसरे के विचार या दूसरी पुस्तकों का सार संग्रह करते हैं वे अगर यह कार्य जनहित की मुख्यता से करें तो उनका यह काम विस्तारण तप होगा । जनहित की मुख्यता न हो तो सिर्फ विस्तारण होगा। तप न होगा । वास्तविक निर्माण' आत्मनिरीक्षण के बाद ही होता है ।
८--उपदेश - अपने अनुभव और आत्मशुद्धि के आधार पर जगत को सन्मार्ग पर चलाने के लिये प्रेरणा करना उपदेश है । यह लिख कर या बोलकर दिया जाता है । मुख्यता बोलने की है ।
उपदेश और व्याख्यान में अन्तर है । व्याख्यान में तो इधर उधर की बातों को लेकर व्याख्या