Book Title: Satyamrut Achar Kand
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 196
________________ विशेष साधना तप ४०२ होनेवाले हों, उनके जीवन चरित्र का अध्ययन कैसा संगठन करना चाहिये, कैसी सेवा करना करना चाहिये। चाहिये कैसा प्रचार करना चाहिये, उनको विशेष प्रश्न--भूत और वर्तमाम के सत्यसेवकों की सहायता कैसे मिले, कौन कौन लोग इस मार्ग पर जीवन-कथा की जा सकती है पर जो अभी हुए चल रहे हैं, सुव्यवस्था और मनुष्य के विकास के ही नहीं उनकी जीवन-कथा कैसे की जा सकती है। साथ अधिक से अधिक स्वतन्त्रता कैसे मिले, या ... उत्तर--सत्यसेवक कथा किसी सेवक की कथा इस प्रकार के लोगों का विशाल संगठन कैसे हो नहीं है किन्तु सत्य के एक अंश के व्यावहारिक और कैसा हो, इत्यादि कथा सत्यसमाज कथा है । रूप की कथा है । समाज की अवस्था और गति , ३ अर्पण-सदृष्टि को प्रतिदिन कुछ अर्पण के अनुसार सत्य के कैस व्यावहारिक रूप की ( दान ) अवश्यकरना चाहिये । यों तो अर्पण का आवश्यकता है यह हम समझ सकते हैं । जैसी क्षेत्र विशाल है पर यहाँ अर्पण के उस विशाल आवश्यकता होती है उसी के अनुसार महात्मा रूप से मतलब नहीं है । उसका उल्लेख आगे प्रगट होते हैं । हम उनके सामान्य रूप को अभ्यास-धर्मों में दान के नाम से किया जायगा । पहिले से ही समझ सकते हैं और उसी रूपमें उनकी यहां तो सदृष्टि के लिये आवश्यक दान (अर्पण) कथा कह सकते हैं। उनकी जन्मतिथि उत्पत्ति का ही उल्लेख है.। वन्दन और स्वाध्याय की तरह स्थानं कुल कुटुंम्ब आदि को जानना जरूरी नहीं है। अर्पण भी तीन तरह का है-१-सापण भविष्य के तीर्थकर पैगम्बर अवतार आदि २-सत्यसेवकार्पण, ३-सत्यसमाजार्पण । वन्दन सत्यसेवकों की वन्दना करने का मतलब यह है कि और और स्वाध्याय की तरह ये तीनों प्रकार के मनुष्य में प्राचीनता का मोह न रहे, वह सुधारक अर्पण भी सत्यार्पण हैं, व्यवहार के सुभीते के लिये बना रहे उसकी मनावृत्ति आनेवाले महात्माओं के तीन भेदों में उल्लेख किया गया है। आदर करने की हो। हां, जिनके जीवन में संयम सत्यार्पण--सच्चा सत्यापण तो त्याग है पर नहीं है त्याग नहीं है विश्वसेवा की पर्याप्त भावना वह तो बहुत ऊँची चीज़ है वह सदृष्टि के लिये नहीं है स्वार्थ लिप्सा है, वे यदि अवतार तीर्थंकर आवश्यक कर्तव्य नहीं कहा जा सकता क्योंकि पैगम्बर आदि कहलाने का दंभ करें तो स्वागत वह साधक श्रेणियों में पहिली श्रेणी में हैं ।.. न करना चाहिये बल्कि आवश्यकतानुसार विरोध उसका सत्यार्पण तो ऐसी ही साधारण श्रेणी भी करना चाहिये । पर प्राचीनता का मोह, स्वत्व- का है कि वह धर्मसमभाव आदि के प्रचार के मोह आदि के कारण सच्चे सेवकों और जगसेवा लिये धर्माल्य अदि बनवादे, सत्य प्रचार के लिये के लिये परिवर्तन करनेवालों का विरोध न होने वहां भेंट चढ़ादे या ज्ञानप्राप्ति आदि के लिये कुछ लगे- इसके लिये भविष्य के सत्यसेवकों की सामान्य व्यवस्था करदे । कथा करना उपयोगी है। सत्यसेवकार्पण--समभाव सदाचार विवेक सत्यसमाज कथाः-मनुष्य मात्र में एक आदि के प्रसारक जन सेवकों की सेवा में जनजातीयता की भावना कैसे पैदा हो, इसके लिये सेवा के लिये नम्रता से भेंट रखना सत्यसेवकार्पण

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