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सत्यामृत
किया जा सकता है और वन्दना की जा सकती करना, उनके दुःख में विशेष दुख प्रगट करना है; सरस्वती, शक्ति, प्रेम, स्वतन्त्रता, मानवता, आदि आदि सत्यसमाज बन्दन है। . . अनेक नामों से भी गुण दवों का वन्दन किया. इस प्रकार तीन प्रकार का वन्दन सदृष्टि जा सकता है; विवेक, समभाव, ईमान, शील, तप का पहिला आवश्यक कर्तव्य है। त्यांग, सेवाश्रम आदि धर्मों को पाने की भावना : २ स्वाध्याय कर्तव्य अकर्तव्य का विचार व्यक्त करके या उन्हें प्रणाम करके भी भक्ति की करने के लिये, जीवन शुद्धि की व्यवहारिक कठि. जा सकती है । यह सब सत्यवन्दन है। नाइयों को समझने और उन पर विजय पाने का
सत्यसेवकवन्दन-रामकृष्ण महावीर बुद्ध उपाय जानने के लिये आत्मनिरीक्षण के लिये ईसा मुहम्मद आदि जिन जिन महात्माओं ने स्वाध्याय करना चाहिये । पढ़ना पछना चर्चा मनुष्य मात्र को एक सूत्र में बाँधने की, अन्याय करना लिखना आदि स्वाध्याय के बहुत तरीके अत्याचारों को दूर करने की और मनुष्य को सुखी हैं, ज्ञानचर्या तप के प्रकरण में इनका उल्लेख हुआ सदाचारी बनाने की कोशिश की और इस कार्य में है। किसी भी तरीके से स्वाध्याय किया जा अपना जीवन लगाया; जो महात्मा ऐसी कोशिश सकता है । यहां जो मुख्य बात कहना है वह कर रहे हैं और इस कार्य में जीवन लगा रहे यह कि स्वाध्याय में तीन तरह की कथाओं का हैं, जो महात्मा भविष्य में ऐसी कोशिश करेंगे
शि करग उपयोग करना चाहिये १ सत्यकथा २ सत्यसेवक
, और जीवन लगायँगे उनको प्रणाम करना उनका
कथा ३ सत्यसमाज कथा । वास्तव में ये तीनों गुणगान करना, उनके मार्ग पर चलने की इच्छा ।
सत्यकथा है, व्यवहार के लिये ये भेद किये गये हैं । प्रगट करना, सत्यसेवक वन्दनं है। भले ही समभाव के साथ किसी एक का ही नाम लिया
.. सत्यकथा-सत्य. अहिंसा सेवा तप त्याग जाय या बहुतों का नाम लिया जाय या किसी का
शील · आदि विश्वकल्याण की नीति जानने के नाम न लेकर सभी सत्यसेवकों को प्रणाम किया जाय
लिये सत्यामृत गीता कुरान बाइबिल पिटक सूत्र उनका गुणकीर्तन आदि किया जाय, यह अथवा
आदि के चुने हुए अंश तथा नीति का उपदेश सब सत्यसंवकवन्दन है।
देने वाले अन्य ग्रन्थों का स्वाध्याय करना सत्य
कथा है। ___ सत्यसमाज वन्दन--जो लोग जगत्कल्याण
. के मार्ग पर चलते हैं, न्यायी, समभावी, सदाचारी .. सत्यसेवक कथा-सत्य सेवक वन्दन के प्रकरण सेवक और त्यागी बनते हैं वे किसी भी देश में बताये गये महात्माओं के जीवन चरित्र या के हों, किसी भी काम के हों, किसी भी धर्म संस्था संस्मरण पढ़ना उनके पद चिन्हों पर चलने की के सदस्य हों उन सबको प्रमाण करना, उनके रीति समज्ञना उनके सद्गुणों को अपने जीवन में कार्यों की तारीफ़ करना; उनका अनुकरण करने उतारने के लिये विचार करना आदि सत्यसेवक की उनको अपनाने की, अपने को उनमें कथा है । वे महात्मा तीर्थकर पैगम्बर अवतार मिलाने की, उनके साथ सामाजिक सम्बन्ध या आदि किसी पद से विभूषित हो या न हों वे विशेष मैत्री सम्बन्ध स्थापित करने की भावना प्रगट पहिले हो चुके हों आज जीवित हों भविष्य में