________________
भगवती के उग
पर जिनमें जनसेवा आदि दिख तो रही है। पर वास्तव में वे हैं नहीं, उन्हें भिक्षा माँगने का अधिकार नहीं है । जैसे एक आदमी उपवास करता है और भी अनेक तरह के कष्टों का प्रदर्शन करता है पर उसकी यह साधना जनसेवा के लिये नहीं है अपनी पूजा प्रतिष्ठा के लिये है तो वह साधु नहीं है उसे भिक्षा मांगने का अधिकार नहीं है। उसका भिक्षा माँगना दुर्जन है।
जिनने जीवन भर काफी सेवा की है पर अब वृद्धावस्था में शरीर और मन सेवा करने के लायक नहीं रहा है, सरकारी प्रबन्ध ऐसा नहीं है. कि उन्हें खाने मिले, सन्तान अथवा बन्धुबान्धव भी ऐसे नहीं है कि पालन पोषण करें तो उन्हें भिक्षा मांगने का अधिकार है। कोशिश तो यही होना चाहिये कि वे जहां तक बन सके मिक्षा न मांगे पर मांगना पड़े तो वे क्षन्तव्य 1
जो बात वृद्धों के विषय में कही गई है वही अनाथ बच्चों के विषय में भी कही जा सकती है पर उनके विषय में यह ख्याल रखना चाहिये कि वे कहीं दूसरों के प्रतिनिधि तो नहीं हैं। देखा गया है कि बहुत से लोग बच्चों से मिक्षा मँगवाते हैं और मुफ्त में खाते हैं। बहुत से बच्चे काम कर सकते हैं पर भिक्षा मांगते मांगते उनमें ऐसी मुफ्तखोरी जाती है कि काम करने के नाम से डरते हैं। ऐसे बच्चों भिक्षा मांगने का अधिकार नहीं है। जो काम कर मकते हैं उन्हें काम करके ही जीविका करना चाहिये ।
प्रश्न- देश में बेकारी इतनी अधिक हो कि किसी आदमी का कोशिश करने पर भी काम न मिलता हो तो वह क्या करे ! भिक्षा मांगे या भूखों मर जाय !
३७२
तर
कभी भिक्षा मांगने की अपेक्षा
भूखों मर जाना भी अच्छा हो सकता है पर यह सब समय अच्छा नहीं है न हर एक आदमी ऐसा कार्य कर सकता है इसलिये मिक्षा मांग सकता है, पर उसके मांगने का तरीक ऐसा होना चाहिये कि जिससे व
न बन जाय न समझा जाय ।
वह भिक्षा मांगने के पहिले कुछ काम मांगने के लिये जाय अगर कोई काम न दे तो भिक्षा मांगले, पर भिक्षा मिटने पर कुछ काम कर दे । कुछ काम न हो तो दरवाजे पर झाड़ तो लगा ही सकता है। अगर मामला उसके घर कुछ काम न हो, तो आम लोगों की सेवा कर सकता है। गांवों और नगरों में साफ़ सफाई का काम ही इतना और ऐसा होता है कि कोई भी आदमी कर सकता है। हर एक घर में कुछ ऐसे काम होते है जो ईमानदार आदमी से सरलता से कराये जा सकते हैं। मतलब यह कि मनुष्य बेकार हो गया हो और भिक्षा मांगने के सिवाय और ठीक उपाय उसके पास न हो तो कुछ समय तक मिक्षा मांग सकता है पर उसे अकर्मण्य न बनना चाहिये किसी न किसी तरह र की या समाज की सेवा उसे कर देना चाहिये और यहाँ तक करने की चेष्टा करना चाहिये कि उसकी मेवा की बाजारू कीमत मिक्षा की चीज के बराबर हो जाय । फिर भी ऐसी भिक्षा को चान बनाना चाहिये, काम ढूंढ़ने की कोशिश करते ही रहना चाहिये, ऐसी हालत में बेकार आदमी का भिक्षा मांगना दुरर्जन न होगा।
कुछ लोग किसी अंधे लूले लंगड़े को पकड़ कर उसके लिये भिक्षा माँगने का धंधा करने