Book Title: Satyamrut Achar Kand
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 167
________________ सत्यामृत व्यक्ति उस व्यक्ति से श्रेष्ठ है जो अपजीविकः दुरर्जन है । साधुता के नाम पर अगर कोई मिक्षा से रुपया कमा कर दानवीर बना हुआ है। ऐसे मांग रहा हो तो यह देखना चाहिये कि यह कोदानवीर को हम दाति या प्रभारी नसी जनसेवा कर रहा है। जनसेवा का कोई कह सकते हैं पर पुण्यात्मा अनुकरण ६ आदरणीय कार्य न कर रहा हो तो वह भिक्षा मांगने का नहीं कर सकते। अधिकारी नहीं है। मरहम लगाने के लिये जमे छुरी मारना कभी कभी किसीकी जनसेवा दिखाई नहीं देती ठीक नहीं, उसी प्रकार दान देने के लिये पाप- तो यह देखना चाहिये कि इसने साधुता के लिये जीविका ठीक नहीं, हां, छुरी लग जाने पर उम त्याग क्या किया है। म. महावीर ने साधुजीकी पट्टी करना चाहिये उसी प्रकार पापजीविका वन के प्रारम्भ के बारह वर्ष तक कोई जनसेवा करने पर सम्पत्ति दान में लगा देना चाहिये, फिर नहीं की, जनसेवा की साधना की पर वह लोगों भी करी न मारने से जो आराम रहता है वह छुरी को दिखाई नहीं दे सकती थी तब वे अपने मारकर मरहम लगाने पर भी नहीं होता। इसी प्रकार त्याग के बल पर भिक्षा मांगने के अधिकारी थे । जीविका न करने से जो स्थपरकल्याण अगर किसी का त्याग न दिखता हो तो वह पापजीविक करके दान देने पर भी नहीं है इसन्निये न पत्रिका में जयः सट्टा आदि-का उसमें जनसेना की साधना दिखना चाहिये । दिखना त्यागही श्रेष्ठ जरूरी न हे ज़रूरी है होना, पर होने की ओट में सभी मुफ्तखोर अपनी मुफ्तखोरी छिपा सकते हैं ५-भिक्षा-मिक्षा भी एक दुरर्जन है इसलिये दिखने पर कुछ जोर दिया गया है । हां, क्योंकि इस से मनुष्य दूसरों के जीवन का बोझ दिखने का यह मतलब नहीं है कि वा घर उसके बन जाते हैं उनके भीतर मुफ्तखोरी आ जाती विज्ञापन टंगे हों और उसकी सेवा के गीत गाने है दीनता आ जाती है, इस प्रकार वे अपना कल्याण का नाश करने हैं और इसरों के कल्या को सैकड़ों व्यक्ति अपनी शक्ति लगा रहे हों, ण का भी नाश करते हैं। दिखने का मतलब यह है कि उसकी साधना का या सेवा का कुछ क्रियात्मक रूप हो। हर एक आदमी को चाहिये कि वह समाज को कुछ दे और उस के बदले में रीटी कपड़ा इस प्रकार साधुजीवन की कुछ श्रेणियाँ आदि ले, मुफ्त में किसी से कुछ लेना मनुष्यता बन जाती है १-जनसेवा त्याग और साधना दिख रही है। ___हां, कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका भिक्षा २-जनसेवा और साधना दिख रही है। न दर्जन नही, स्याग है । एक वैभवशाली वैभव ३-त्याग और साधना दिख रही है। स्या का जनमत्री भिक्षुक बन जाता है उसकी ४- साधना दिख रही है। भिक्षा दुरजन नहीं है । पर एक आलसी अकर्म इसी प्रकार जनमेव, आदि के होने के विषय ज्य आदमी गरस बरस मधुक वेष लेकर में भी समक्ष लेना चाहिये । इन मब को मिक्षा भिक्षा मांगने लगता है न उनकः भिक्षा माँगना लेने का अधिकार है।

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