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भगवनी के अंग
खान्त बताने का मतलब यह है कि विवेकडीन जिसके पाप को मुम्ल्यता देना है उसको नायक ण्य की निरर्थकता बताई जाय, अथवा समाज रिवाज कम है। होना भी चाहिये। की उस विग्रेकर पर प्रकाश डाला जाय ३-इस श्रेणी में उन लोगों के चरित्र आते लिने पनि के पुण्य को निष्फल बना दिया है। है जो थे तो पुण्यामा, पर उस पुण्य के अनुरूप समाज की विवेकानन या व्यक्ति की विवेक- जिनमें
मान्य क्षेत्र काल भाव का विवेक नता ही पुण्य की निमालय में कारण है । नहीं था इसलिये उनका पुण्य सफल नहीं हुआ। ठखक अगर इसकी तरफ इशारा करता है, इसके उनने भगवान सब को पाये बिना भगवती अहिंसा लेये चरित्रचित्रण में एक धर्मात्मा का बलिदान को पाने की चेष्टा की इसलिये उनका जीवन कग देता है तो यह दुःखान्त चित्रण भी दुःस्वान्त हुआ। इसमें उन राजपूत वीरों की कहासत्य है।
नियाँ आ सकती है जिनने ईमानदारी और बहा१ पुष्पप्रधान
सुखान्त दरी से प्राण दिये पर अहंकारवश संगठन न कर २ पापप्रधान ,
दुःखान्त मके या अन्यायी का भी पक्ष ले बैठे। ३ व्यकिटोपनबान पुण्य चरित्र , 2- में उनके चरित्र आते हैं जिनने ४
पाप ,, सुग्वान्त किये तो पाप है पर उनमें कुछ ऐसे गुण रहे हैं जो ५ समारोन निकाशित दाबान्त उन्हें जीवन में मार सके हैं । उद दाग ६ समाजदेाषप्रधान व्यक्तिपाप सखान्त अपने या अपनी जाति के स्वार्थ के लिये साम्राज्य ७ पुण्यप्रधान चरित्र
दुःखान्त निर्माण करना एक पाप है पर इस पाप में ८ पाप प्रधान ,
सुखान्त सफल होने वालों के गुर से दुनिया ९ प्रकृतिप्रधान ,
दुःखान्त का साहित्य भरा पड़ा है। उनमें साम्राज्य बनाने १० प्रकृति प्रधान,
सुखान्त बाले महापुरुषों के बारता र कसहि१-इसमें नायक के पुण्य का सफल प्णुता अभिनव सत्य सदाचार अपी-दिखाई देते उत्कर्ष बताया जाता है, उसके पाप तथा समान हैं उन्हीं से उनका जीवन सफल रहता है लेखक के पाप गौण रहते हैं या इतने कमजोर रहते हैं का जोर भी इन्हीं गुणों की तरफ होता है । इसकि नायक के पुण्य से पराजित होकर निष्फल लिये इन्हें सुखान्त बनाने में भी कुछ विशेष नि जाते हैं । म. राम की कथा, पांडवों का जीवन नहीं है बल्कि बहुत कुछ लाभ भी है। आदि इसी तरह के हैं । भारतवर्ष में अधिकांश ५-इस श्रेणी में ऐसे महापुरुषों के चरित्र पुराने चरित्र इसी श्रेणी में आते हैं।
आते है जो पूर्ण पुण्यात्मा अर्थात भगवान सत्य २-इसमें व्यक्ति के गुण गौण रहते हैं पाप की और भगवती अहिमा के लाडले थे विवेकी भी मुख्यता होती है और पाप सफल होकर चरित्र थे सदाचारी भी थे, फिर भी जिनका जीवन को दुःखान्त बनाता है। शिशुपालवध, कीचक- सुखान्त नहीं हुआ । जैसे महामाईमः । महात्मा वध, जयद्रयवध, आदि इसी श्रेणी के हैं। इस ईसा का जीवन महान था, पवित्र था, विवेकपूर्ण प्रकार के चरित्र कुछ कम ही लिखे जाते हैं क्योंकि था, फिर भी अपने जीवन में वे कोई सफलता