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मनुष्य हस्या करके उनकी खोपड़ियों का संग्रह चाहता है पर मजदूरी से बद इतना नहीं कम करनेवाले बड़े आदी समझे जाते हैं, उन बड़े सकता कि वह किसी उचित संस्था को कुछ आदमियों को देखकर दूसरे भी बड़े आदमी अच्छी सी रकम दे सके इसलिये वह सट्टा करता बनने की कोशिश करते हैं, इस कोशिश में है, अगर हार जाता है न कोई बात नहीं, अगर बरतने मारे जाते हैं, कुछ बड़े आदमी बनते जीत जाता है नास्था को निहाल कर देता है है पर सामूहिक कामें उन समाज का नाश क्या ऐसे सटोरिये को आप उध्यानी बग! ही हो रहा है। मटे बाट समाज की भी यही उना .... और यह भी कगा कि दशा होती है।
दान का यह रास्ता भी ठीक नहीं है और इसमें प्रश्न- देखा तो यह जाता है कि जिन सफलता की आशा भी बहुत कम है। शहरा मटाना है उन शहरों में प्रान्तों में पहिली बात तो यह है कि सट्टा पनेपान या लोग बन भी अधिक होता है जब कि जहां का निश्चित मार्ग नहीं है, सौ में पंचनामा सट्टा नहीं होता वही गरीबी बहत रहती है। और पांच बनते हैं, हम पंचानवे में से न
उतर-- 2.2 में बहत से जानबर कटे पांच में से हैं यह आशा ही अपाशा है। होते हैं इसका यह मतलब नहीं है कि कमाई- दूसरी बात यह कि अगर कभी जीत भी खानी से जानवरों की संख्या बनी है, मट्टा से गये मो तुरंत ही यह आशा होती है कि आगे धनवान बनने की बात भी ऐसी ही है। और जी-गे अभी इतने से क्या होता है ! इस बात यह है कि जिन शहरों का तृष्णा का अंत शायद है और एक दिन
पिर ब्यापार से सम्बन्ध होता है या जो जब सबब जाता है तब ऑग्य खुलती है। देश के द्वार बने होते हैं या जो उद्योग केन्द्र तीसरी बात यह कि तुम किसलिये सट्टा होते हैं उन में सम्पत्ति अधिक होती है और करते हो यह दुनिया नहीं देखती, दुनिया यह चारों ओर से आती हुई उस सम्पत्ति के नशे में देग्वती है कि बड़े बड़े भले मानस भी सट्टा करते वहाँ सट्टे के भी केन्द्र बन जाते है । धन सटे से है इसलिये सट्टा बुरा नहीं है इस प्रकार सट ! पर पैदा नहीं होता है पर उयेोग आदि के कारण प्रतिष्ठा की अप लगती है। जो धन एकत्रित हुआ वह सट्टा रूपी यज्ञकुंड में चौथी बात यह कि जो संस्थाएं - स्वाहा होने लगता है।
की कमाई का दान लेती है ये सट्टा आदि का सट्टा से ज। किसी तरह का उत्पादन नही विरोध करने में असमर्थ मी हो जाती ये किस होता, विभाजन नही होता, तब मम्पत्ति बढ़ेगी मुंह से विरोध करें। वे चाहती तो सदाचार कैसे ! राष्ट्र का या जनता का लाभ होगा कैसे! और सुख की वृद्धि, पर उनसे मिलता है हाँ, सौ मिटकर किसी एक का लाभ हो सकतानी आदि को उत्तेजन । है, पर निन्यानवे का यह घाटा देश का दुर्भाग्य पांचवी
भ किन मी एक ही कहा जा सकता है।
प्रकार का लेनदेन है । मनुष्य पूजा प्रश्न- नीजिये एक सददान करना प्रतिष्ठा
, पास