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भगवनी के उशंग
मोटे दर्भोग हैं उनका यहाँ उल्लेम्ब किया गया है। चोरी करता है। जैसे एक बार में संपनीक भोपाल इन दुर्भागों का त्याग करने में सद्भोग अपने आप मेंशन पर उत्तरा, जब शहर में जाने लगा तब अजाता है। दुर्भागों से बचे रहना सद्भाग नाम यहां एक सिराही ने मेरी गटी बुलवाकर देखी, का उपसंयम है।
उममें चार-पाच नाले के चांदी के बिछुए थे । वह २ मदर्जन
बोलाइन पर टेक्स दो । पर उसके एक अधिसदर्जन का मनायब हैमी
कि ये पुराने है और इन .
कारी को माना
.. जिससे अपनी उदरन्ति भी हो और दूसरे को
की पसी के है तो उसने कहा जान दो, : , भी लाभ हो अर्थात हमने जो कुछ किया है उस
नहीं लिया जाता शिकार हाय में जाना देखकर
मिपाकी .. साहिब, इस पर टेक्म देना के बदले में कुछ दिया हो, और नसिकता को
चाहिये । अफसर साधारण था, उसने , .... शक्का न लगा ई. । इससे उल्टा दुरजन उसका
तुम जानी कगे। बा सिपाही मुझे वहां से काफी त्याग करना चाहिये।
दर एक चौकी पर लगया और बोला यही बैठो ___ यहाँ सिर्फ उन दुरजनों से मतलब बडे आफीमर अन है 3 टेक्स देना । बह
न सम्झे जाते । यो तो चीन भी दरगन चला गया और उसके स्थान पर दूसरा सिपाही पर यह
प सलिये उपायक प्रकरण में सामने उR पा .तमारे आफीसर क उसका उल्लेख किया जाता। कोई कोई काम आयंगे ! बोला सुबह आठ बजे । मैने कहा तब ऐसे हैं जो दुरजन से मालूम काते है पर बास्तब तक क्या यह बैठा रहूंगा ! टेक्स लेना हो तो में ये है चोरी, जैसे लांच लना आदि। स्टेशनर ला नहीं तो मैं जाना हूँ। य: बोला-बह __ लांच लेनेवाले कई तरह के होते है किसी सिपाही तुम्हे मेरे पहरे में कर गया है मैं कैसे किसी को नजरचोर और किसी सी जाने दूं! फिर कुछ नरम -200, बलात् चोर कह सकते हैं।
क्यों इस झंझट मे पड़ते है ! चार पैसे देकर छुट्टी
होजिये । नेशन पर में पड़ी को तांगे में छोड़ एक लाँच तो ऐसी होती है जिस में लांच आया था उसकी चिन्ता के कारण मुझे चार देने वाला और नाँच लेने वाला दोनों ही चौर से देने पडे । इस में भोपाल सरकार का तो काटने क्योंकि वे असली मालिक की चोरी करने नकमान न हुआ
के मन है। रेल के भामान के किराये में सामान कम पर टेक्स नहीं था पर उस को परेशान बताना और दो रुपये के बदले में डेढ़ रुपये देना करके चार पैसे लेलिये। यह बलात् चोरी है। इसे और कम रुपये की रसीद लेना इस में दोनों ही उपपाप नहीं कह सकते औ र पाप कहना कम्पनी के चोर है, यह दुरर्जन उपचाप नही चाहिये । मनुष्य को अन्याय से विवश करके किन नया पाप है।
जब कोई रिशवत देता हो तो यः रो । __ कभी कभी रिशवत लेनेवाला ही चोर होता रवे स्टेशनों पर में ऐसी चोरियों है देनेवाटा नहीं, लेनेवाला देनेवाले की बलात् बहुत हुआ करती है ये शासन और समाज का