Book Title: Satyamrut Achar Kand
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 160
________________ की. उपांग ३६६ - - अन्न साना अगर पाप नहीं है तो ग्वती करना तो खेल का मआ है। जाला रहे तो क्या जादु भी पाप नहीं है। के बल दिम्बाना , है ! २रजीवित धंधा करना जिममें मा.... को छल कह देने पर भाषा आदि की ओट में दूसरों को ठगा जाता हो। बदला नही रहता, गद के खिलाड़ी यह का जैसे किमी ने हमारे यहां से जो बार देते हैं या :::: यह बात घोषित रहती है शीशियं खरीदेगा उसे एम. बड़ी इनाम दे जायगी कि इन खलों में हाथ की सफाई आदि है । तुम्हारी जो एकसा टाइम देती है। खरीदने पर वह घडी दृष्टि या वृद्धि को भुला सकने की योग्यता दिखा इनाम देदी जिसके काटे एक ही जगह बने रहने का मन है, यलन देन में कोटल है, ना चलता नहीं है, एक एक पैन में द नहीं करने। कर बच्चे जिससे खेला करत । एकमा टाइम एक आदमी बनकर तुम्हें धोखा देने का अर्थ न चलना है, यह जनता नहीं दे जाता है तो वह चोर है ली है, पर एक समझती, इस प्रकार शब्दों के छल से धोखा देकर बहुरूपिया : बनकर तुम्हें भुलावा दे धंधा करना है । सूचना जब ऐसे जाता है और फिर इनाम मांगता है तो यह न शब्दों में या ऐसी भाषा म दी गती है जिस चोरीईन :: :: है। एक आदमी साधुसाधारण लोग नहीं समझते ता उनकी इस ना- बेधी बनकर लोगों को ठगे तो हम उसे छलजीवी समझी से लाभ उठाने के उद्देश से जो छल किया ___ या पाप कहेंगे पर बहुरूपिया बनकर भुला सके जाता है वह छतमीविका है । सीधी भाषा में भी तो उस छलजीवी न करेंगे । उसे भुलाते समय छल किया जाता है, जैसे किसी ने विज्ञापन लाम न उठाना चाहिये। निकाला- खटमल मारने का अमोघ उपाय बनाने जैसे एक, बहुरूपिया साधुवेष बनाकर रास्ते में की कीमत सिर्फ आठ किसी ने आट आना देकर उपाय पृछा से लिखा दिया खटमल बट गया । वहा से गजा निकला, राजाने उसे देखकर एक चिमटी से पकड़िये और एकलकती मात्र समझ कर नमस्कार किया, आर का भट के तखते पर रखकर छोटी सी हथोडी से कुचल देना चाहा लोकन साधुन - ..माधुआ दीजिये । उपाय तो सचमुच अमोब रहा. पर को धन पैसे से क्या मतलब, मुझदो हाथ जार ग्राहक को न ते ऐसे अमोघ उपाय की जरूरत मुट्ठी भर सो ईश्वर की दया से सब थी न वह ऐसा समझा था, दिन भी जगह मिल जाताहे में सपना ? इस मर्म को समझता था और ग्राहकों को धोखा राजा माधु की निस्पृहता में बहुत खुश हुआ देने के लिये उसने ऐसा विज्ञापन निकाला था। और प्रणाम करक और माधु का मत बनकर यह छलजीविका है। ज्योतिष आदि की ओर चला गया । जो ठगते हैं उनकी बइ जीविका भी : बिहै। कुछ दूर पहुंचा सब यह साधु प्रश्न-जन वगैरह के खेल मनोरंजन के अपना साधु वेष उतार कर राजा के पास गया लिए जरूरी होते हैं उनमें छल न किया जाय और इनाम मांगने लगा कहा कि मैं

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