Book Title: Satyamrut Achar Kand
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 161
________________ है। राजाने ... - इनाम तुम्हें अभी मिल जया खेटने वालों की दुर्दशा के उदाहरण मकना है उससे अधिक मैं तुम्हारे सामने चहा बहत से मिलते हैं। जूवा ने युधिष्ठिर की दर्दशा आया था कर वह तुमन लिया क्यों नही ! बहुरू. की, नारीत्र का अपमान कराया, कौरवों में प्रया ने कहा-में अपनी कला दिखाकर ईमानदारी उन्माद भरा, अन्त में महाभारत में उनका भी की रोटी चाहता है . धोखा देकर लजीवी नई नाश हुआ --- यह मत्र प्रसिद्ध ही है। आज भी बनना चाहता । हर गांव और हर मुहल्ले में जुवाड़ियों की दुर्दशा जादक ग्विलाहीक विषय में भी यही बाया नमने मिन्टन है। उनका व्यापार हा कही जा सकती है। जाद का खिलारी रुपये का जाता है, व घाकी चीजे और पत्नी के आभूपण दो रुपया बना देता है पर इसके लिये वह किसी आदि भी जूवा पर चढ़ा देते है, बेचारी पनि से रुपये नहीं ठगता व तो अपना इनाम या नहीं देना चाहती तो उसे मारने-पीटने हैटिकिट के पैसे ही लेता है इसलिये छलजीवी नहीं इस प्रकार एक तरह का जंगलीपन और देशलाहै। छल करने की कला दिखाकर एक कलाकार नियत उनपर जाती है। उनका कोटाम्बक कोहसियत से जीविका करना छलजीविका नहीं जीवन नरक बन जाता है। झूठ बोलने की और है किन्तु जीविका में छल करना और छल से धीरे धीरे चोरी करने की आदत पड़ जाती है, रुपये टग लेन बर्ग बिका है । नकली साधु जीत में ऐसा उन्माद आ जाता है कि वह अपने स ब चोर भी है पर बदरुपिया न तो दमदान र को मुश्किल से सुरक्षित रख पाता चोर नलजीवी। है, नशबाजी आदि का व्यसन भी लग जाता है। ३.जवा-- अनिमय का आधार न अगर जुवा खेलने वाला व्यक्ति अच्छा से नो काई सेवा हो, न कोई उपयोगी अच्छा संयमी भी हो तो भी समय की बरबादी, चीज, किन्तु किसी कृत्रिम या अकृत्रिम पैसों की हानियाँ, मुफ्तखोरी और काफी समय घटना के आधार पर देन-लेन की शर्त करना तक चिन्ता और व्याकुलता होती ही है । पर पा। जहाँ देन-लेन न हो सिर्फ मने विन्द जुवाड़ियों में ऐसे संयमी कम ही होते हैं, अधिके लिये जीत-हार हो वहाँ जूवा नहीं है। कौड़ी कांश की ऐसी ही दुर्दशा होती है जैसी कि फेकना, पासा फेकना, तास' के अनेक खेल, ऊपर बताई जा चुकी है। इसलिये जूवा खराब चूड़ी फेकना, धुड़दौड की शर्तबन्दी, लाटरी आदि से खराब दुरर्जन है। धर्म तो इसे रोकता ही है जया के खेल है। जूबा में न तो कोई उपयोगी साथ ही समाज और राज्य को भी इसकी रोक चीज पैदा होती है न ब्यापार की तरह इधर करना चाहिए । जो राज्य घुड-दौड़ की शर्त और से उधर जाकर लोगों को मिलने में सहूलियत लाटरी की अनुमति देते हैं वे जूवा का प्रचार होती है, व्यर्थ होमपति र उपर दी है, करके जनता का नाश करते हैं। जावटने काही न शक्ति बर्बाद प्रश्न-धुड-दौर तो अच्छी बात है इससे समकाबील एक तस की मुफ्त- स्वास्थ्य और सैनिकता का विकास होता है, का कबरीमला है। देखने वाले का मनेबिनेद होता है। इसके ।

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