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कलंक है । रिश्वतखोरी पूरी चोरी है, पाप है, दुरर्जन के अनेक भेद हो सकते हैं, समझने उपपाप नहीं। इस मफेद उकेती कहना चाहिये। के लिये छः भेद यहां किये जाते हैं । १-पाप
मी प्रकार कम तौलना, अधिक कीमत की जायका २-उन्ट जीविका ३--जूवा, ४-सट्टा चीज में कम कीमत की चीज मिलाकर बेचना, ५-भिक्षा, ६-व्याज, एक मालका भाव करके उसके बदले दूसरा सस्ता १-पापजीविका-ऐसी जीविका को पापमाल देदेना आदि भी चोरी है पाप है। दुरर्जन के जीविका कहते हैं जो पाप पर अवलम्बित है, प्रकरण में इन चोरियों से मतलब नहीं है क्योंकि जिससे दूसरों का पतन होता है प्राणिघात होता ये सब पाप है उपपाप नहीं।
है या ओर भी किसी न किसी प्रकार का दुःख९ सामना दुरर्जन उपपाप वह है जिस में लेनेवाल
वर्धन होता है । जवा और सट्टा भी पाप जीविका और देनेवाले की अनुमति होने पर भी या तो
है पर इन दोनों को अलग बताने की जरूरत
इसलिये है कि जवा तो जीविकारूप में प्रसिद्ध विनिमय के मूल सिद्धान्तों का भंग है, जैसे जुआ
नहीं है और सट्टा को बहुत से लोग शुद्ध व्यापार आदि, अथवा अपने या दूसरों के जीवन का पतन
समझते है। इन दोनों की दुर्जनता पर जोर देने है जैसे बेश्यावृत्ति आदि । जूआ आदि के नियम
को लिये इन्हें अन्टग बतलाया है। छल जीविका को दोनों पक्षों को मंजूर होते हैं पर इससे लेन देन भी पाप-जीविका कह सकते हैं परन्तु स्पष्टता के का कोई व्यवहार सिद्ध नहीं होता।
लिये उमे भी अलग बताया, इस प्रकार पाप-जीविका लेन देन का व्यवहार किसी न किमी सेवा का अर्थ जरा संकुचित सा हो गया है । के आधार पर खड़ा हुआ है । मनुष्य जब किसी ऐसी कामोद्दीपक दवाइयों का व्यापार जिनसे को कोई मुविधा देता है, मुख देता है, तब उसे लोगों के चरित्र और स्वास्थ्य का नाश होता हो उसके बदले में कुछ लेने का हक है। एक वेश्या की जीविका (अगर वह शीलवती न हो), यद्वान ज्ञान देता है एक सिपाही रक्षण देता है, आदि प.पजीविकार हैं। बहुतसी जीविकाएँ एक व्यापारी दर से चीज मँगाकर समय पर हाजिर साधारणतः बुरी नहीं होती पर बुरे उद्देश से पापकरता है, एक अनाज आदि पैदा करता है एक शुद्र जीविका बन जाती हैं । जैसे किसी देश को किमी नाह की परिचर्य है, इस प्रकार हर अफीमची बनाने के लिये उस देश में अफीमका एक आदमी किसी न किसी तरह का परिश्रम व्यापार करना, दुमरे देशी पर आक्रमण करने के 1 और दसरे को पचाना है उसके लिये विषैली गैस आदि बनाना इत्यादि। बदले में उसे रुपया पैसा आदि दिया जाता है। प्रश्न-खती ने हिंसा होती है इसीलिये इसे श्री इस तरह का परिश्रम नहीं करता न लाभ पाप-जीविका कहा जाय या नहीं? पहुंचाता है फिर भी रूपया पैसा आदि लेता है उत्तर-नहीं, क्योंकि अगर खेती न की जाय तो उसकी आमदनी कानून से या समाज से अनुमो- तो मनुष्य मांस-भक्षण करेगा, खेती से एक बड़ा देन ही क्यों न हो यह दुर्जन है।
पाप रुकता है इसलिये यह पुण्यजीविका है !