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साहित्य निर्माण कर गये है। कुछ ने शराब का भी उपयोग किया है, तब इसे दुर्भाग क्यों कहा जाय, ! इस के अतिरिक्त एक बात यह भी है कि जो देश बहुत ठंडे हैं वहाँ शराब स्वास्थ्य के लिये भी आवश्यक है, थोड़ी मात्रा में पीने से नशा भी नहीं आता । कभी कभी दवा के लिये भी शराब की जरूरत होती है या दवा में मिलाना पड़ती है। इस सब कारणों से मद्यपान को दुर्भोग क्यों कहा जाय !
भत्यामुत
उत्तर - मब किसी चीज का नाम नहीं है एक ही चीज देश काल पात्र के भेद से मद्य या अमय हो सकती है। बुराई है नशे में । इसलिये अगर दबा में मच का मिश्रण हुआ हो तो उस मपान में दोष नहीं है। ठंडे देशों में अगर कोई मय स्वास्थ्य के लिये आवश्यक हो और वहाँ नशा न लाता हो तो वह भी मद्यपान नहीं है । निर्माण आदि के विषय में भी ऐसी ही कुछ बात कही जा सकती है पर साथ ही यह भी समझना चाहिये कि लेखन आदि के लिये शराब की आवश्यकता मालूम होना वास्तविक नहीं है, नशेबाजी का दुष्ीणाम है।
नशीली चीजों यह भी एक खराबी है कि जीवन की सहज शक्तियों को वे इस प्रकार पचा जाती है कि उन के बिना सहज शक्तियों का अस्तित्व भी मालूम नहीं होता, ऐसा मालूम होने लगता है कि हमारी विचारता एकाग्रता हमारी नहीं है भंग या शराब की दी हुई है। पर बात ऐसी नहीं है आज तक हजारों तीर्थंकर पैगम्बर अवतार दार्शनिक वैज्ञानिक कवि आदि हुए हैं उनमें हजार में नवसौ निन्यानवे को विचार और भावना के लिये नशे की नहीं हई । पका को हुई तो इसका कारण यही कहा
जा सकता है कि उसे वह दुसन पहिले से लगा था । दुर्व्यसन से लाभ तो कुछ होता नहीं है किन्तु स्वाभाविक शक्तियाँ इस तरह कुंठित हो जाती हैं कि नशे के बिना वे स्वाभाविक काम नहीं कर पानी । इसलिये साहित्य आदि के लिये नशे की आदत डालना दुर्भाग ही है। यदि इसका थोड़ा बहुत उपयोग हो भी, तो भी इसका त्याग ही करना चाहिये क्योंकि इससे विक शक्ति का नाश ही होता है । कृत्रिम गति के लिये मानविक गति का नाश करना पालकी में बैठने के लिये अपने पैर कटा डालने के समान हैं ।
प्रश्न--दुःख भुगतने के लिये बहुत से आदमी नशा करने लगते हैं, दुःख कम करना तो धर्म है ऐसे आदमियों के लिये नशा भी चिकित्सा क्यों न समझी जाय !
उत्तर
आत्महत्या दुःख से छूटने का ठीक उपाय नहीं है उसी प्रकार नशा दुःख भुलाने का ठीक उपाय नहीं है । जीवन को नाटक समझकर दुःख को भुलाना या उसको सहजाना ही ठीक उपाय है नशा से तो मनुष्य अपने दुःख बढ़ा लेता है उनको दूर करने में शिथिल हो जाता है कभी कभी वे अनेक कुकृत्य भी कर जाता है, सहिष्णुता नष्ट हो जानी है इस प्रकार लाभ की अपेक्षा हानि कई गुणी होती है, लाभ क्षणिक होता है और हानि स्थायी होती है, इसलिये नशा चिकित्सा नहीं है न इसे अपनाना चाहिये ।
दुर्भोग और भी कहे जा सकते हैं, ऐसे खेल देना जिससे मनोवृत्ति दूषित होती हो आदि भी पर ऐसे दुर्भागों का व्रतरूप में निन्त्र करना कठिन है, इसलिये ऐसे दुर्भागों की गिनती यहां नहीं की जाती है। जो मोटे