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मन्यामत
प्रश्न- सहज भाग्यज भ्रमज प्राणघात मांसभक्षण का प्रचार अगर इसलाम का उद्देश ऐसे बताये गये हैं जिन्हें पण्यपाप का विषय नहीं होता तो हज वगैरह के समय अधिक से अधिक यहा गया । जहां अन्न कम होता है वहाँ मांस- मांस खाने की बात कही जाती न कि मांस खाना भक्षण को भी महजघात क्यों न कह दिया जाय? बिलकुल बन्द किया जाता । इससे मालूम होता
उत्तर-स्वास लेने आदि में जो प्राणघात है कि इसलाम ने भी अहिंसा को बढ़ाया है, होता हे वह सहजघात हे उसमें मनुष्य को इच्छा- यथासाध्य हिंसा को घटाया है। पूर्वक कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता वह सोते में हां, यह अवश्य है कि परिस्थिति के अनुभी होता है। मनगरेमान: है। वह इच्छा- सार जितनी हिंसा रोकी जा सकती थी उतनी पूर्वक होता है । भक्षणघात के प्रकरण में इस रोकी गई, अति करने से प्रतिक्रिया न हो जाय विश्य में कुछ कहा गया है यह देखना चाहिये। इसलिये कुछ विधान रखना पड़ा । इस प्रकार उस
प्रश्न-मनन को उपपाप भी क्यों कहा, परिस्थिति के अनुसार निरतिवादी विधान बनाया उसे तो पाप ही कहना चाहिये !
उरलान का दसरा नाम मानवधर्म ऐसे भी मजहब है जिनने मांसभक्षण के शाख है, इसमें विश्वहित का पूरा खयाल रखा विषय में कुछ नहीं किया। उनके सामने समाज मया है फिर भी उसके व्यवहार्य रूप पर विचार की दूसरी समस्याएँ इतनी प्रबल थीं वे इस तरफ करते समय मानवहित पर विशेष दृष्टि रक्सी गई धान नहीं दे सके इसलिये हम उन्हें हिमा-प्रचाहै। निश्चीिन की दृष्टि से मांसभक्षा पाप है पर रक नहीं कह सकते । परिस्थिति के अनुसार मानव की विवशता देखकर कोई मजहब सब सचाइयों को दनिया के मानवहित की दृष्टि से कहीं कहीं इसे क्षन्तव्य भी आगे पेश नहीं कर सकता । उसके विधान देश मानलिया जाता है इसलिये इसे उपपाप कहा गया काल के अनुसार बनते हैं या उन्हीं पर जोर है इसलिये दुर्भोग के प्रकरण में इसका उल्लेव डाला जाता है । पूर्ण सत्य को दिखाने की ताकत किया गया है।
किसी में नहीं है, इसलिये किसी मजहब में कोई प्रश्न-जिन धर्मों ने मांसभक्षण का प्रचर बात रह जाती है, किसी में कोई बात विशेष किया है या समर्थन किया है उन्हें आप धर्म कैसे रूपमें आ जाती हैं, पर इसीलिये धर्म-समभाव का कह सकेंगे? और धर्मसमभाव कैसे रख सकेंगे। विरोध नहीं किया जा सकता. न उसे अव्यवहार्य जैसे इसलाम में आप भक्ति कैसे रख सकते हैं। बताया जा सकता है क्योंकि सभी धर्म कल्याण ____उत्तर--धर्म मांस का प्रचार नहीं करता, की दृष्टि से समाज को आगे बढ़ानेवाले होते हैं । इसलाम ने भी मांसभक्षण का प्रचार नहीं किया प्रश्न-पर, धनों में मांसभक्षण की उत्तेजना बल्कि उसने तो मांसभक्षण रोका है. प्राणिवध के न सही, मांसभक्षण को दोंग करना भी ठीक निर्दय तरीकों को बन्द कि , किसी प्र.जीक है पर दुर्भोग तो यह इमीलिये है कि इसमें प्राणितड़पाकर मारने की मनाई की है, हज बगैरह करते बर होता है परन्तु अगर प्राणी अपने आप मर समय मांस स्वाना आदि बिलकुन्ट बन्द कर दिया है। जाय तो उसके मांस-भक्षण में क्या पार है !