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सत्यामत
इससे भी खगत्र प्रथा बहुपत्नीत्व की है। कठिनाई बहुपत्नीत्व में भी है इसलिये कानून के इस में वहिली पत्नी का अधिकार छीना जाता है द्वारा या तो दोनों अनुमोदित हो या दोनों त्याज्य कुछ विवाद भी किया जाता है। समाजानु- हो। मादिन हाने से और थोड़े बहुत अंशों में कभी आदर्श और अधिक से अधिक व्यवहार्य तो आवश्यक भी होने से इसे पाप नहीं कहा फिर अभिन्न दाम्पत्य है जिसमें एक ही पत्नी और एक भी इसे उपपाप अवश्य कहना चाहिये । और इस ही पति रहता है पर अपवाद के रूपमें अगर प्रथा को नष्ट करना चाहिये ।
कभी इस नियम को शिथिल करना पड़े तो बहुप्रश्न- दो सखियाँ अगर एक ही पुरुष को पत्नीत्र और बहुपतित्र दोनों को जगह मिलना चाहती हे दोनों में परस्पर गाद प्रेम भी हो दोनों चाहिये जिससे नाव को धक्का न इस बात पर रजामन्द हो कि वे उस पुरुष के लगे। साथ ही यः नियम रखना चाहिये कि एक साथ शादी करके मिलकर हैं, इस प्रकार दोनों ही साथ बहुत पति या बहुत पन्नियाँ बनाई जाय की एक साथ उस पुरुष के साथ शादी हो जाय एक विवाह के बाद दूसरा विवाह करके बहुत तो इसे उपपाप कहा जाय या नहीं ! पनि या बहुत पत्नी न बनाई जाँय क्योकि इसस
उत्तर--इस हालत में यह उपपाप न रहेगा। पहिले पति या पहिली पत्नी के साथ एक तरह इस की बुराई बहुपतित्व के बराबर रह जायगी। का निधन होना है । अगर पहिले पति या अगर दोनों की उस पुरुप के साथ शादी न पहिली पनी से स्वीकृति भी ली जाय तो भी वह होने के कारण जीवन में कोई दुःखान्त घटना स्वीकृति शुद्ध नहीं होती उसमें किसी न किसी होने की सम्भवना हो तो दोनों को माथ ही तरह का दबाव पड़ता है । शादी का पहिये । पर यह भी खयाल रखना प्रभ- आर दो में से किसी एक में ऐसी उचित है कि जैसे दो सखियों का किसी एक दृष्टता हो कि दाम्पत्य निभ ही न सकता हो या पुरुष पर आसक्त होना सम्भव है उसी प्रकार कोई एक ऐसा बीमार पड़ गया हो कि वर्षों दो मित्रों का एक ही नारी पर आसक्तचना या जीवन भर दमन्य सुविधा उससे न मिल सम्भव है इसलिये अगर दोनों मित्र रजामन्द हो सकती हो तो ऐसी हालत में क्या किया जाय ! जाय और वह स्त्री भी रजामन्द हो जाये तो उत्तर--- शब्द का दुरुपयोग न किया दोनों को एक साथ इसके साथ शादी कर लेना जाय फिर अगर सचमुच दाम्पत्य को अशक्य कर चाहिये इसलिये प्राधिक बहुपत्नीत्व की तरह देनेवाली दष्टता हो तो तलाक दे देना चाहिये । अपय कि बहुपतित्व भी कानून से अनुमोदित पर बीमारी के कारण तलाक देना उचित नहीं होने चाहिये, दोन। मित्र प्रतिस्पर्धी बनकर एक जहां तक हो बीमार को निभाना चाहिये । हां, दमो क ना करें इस की अपेक्षा बहुपतित्व को अगर बीमारी असाध्य हो बहुत लम्बे समय के क्यों न अपनाले !
लिये हो, कोदाल जाकर बनन' हो, और इस मे सन्देह नहीं कि जीवन के अन्त तक अपनी जवानी का प्रारम्भ हो, ये चारों बातें हो बहुपतिथ का मुम्बमय रहना कठिन है पर यह तो बीमारी की सेवा और वर निह का उचित्र