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भगवती के उपांग
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के अनुकूल हैं पर अनुकत होने पर भी उनके व्यभिचार की चार श्रेणियाँ हैंएक साथ रहने का नियम नहीं है। साधारण १. या न. २-असार रीति से तपस्वी असंयमी भी हो सकता है और गमन, : - मा . मान । संयमी अतपस्वी भी हो सकता है। वही मन बलात्कार आदि में व्यभिचार की मुख्यता हो यह शोभा की बात है।
नहीं है हिंसा की मुख्यना है , वह एक तरह की इसमे इतना पता लगता है कि संयम के डकैती भी है इसलिये यह व्यभिचार से कई लिये दुर्भोग का ही त्याग जरूरी है सद्भोग का गुणा अधिक और दूसरी तरह का महरार है। त्याग नहीं । इसलिये सद्भोग उपसंयम है। उपपास से वह इतना अधिक और भिन्न है कि जनहित के लिये सद्भोग का ग्याग करना पड़े उपपाप के प्रकरण में उसका विचार भी नहीं तो वह तप है।
किया जाता है। यह नो मनुष्यवध के समान यहाँ सद्भोग और दुर्भाग का विचार संयम बल्कि कुछ अंशों में उससे भी अधिक है। । की दृष्टि से ही करना है। जिससे हिंसा होती -सीमन मारामान भी उपपाप हो, द्वेष बढ़ता हो, द का भान न रहता नहीं है क्योंकि काफी बड़ी भारी चोरी है और हो, सामाजिक सुव्यवस्था भंग होती हो वह दुर्भोग बड़ा भारी असत्य है । वह अर्धघात और विश्वासहै, इससे उल्टा सद्भोग है।
घात होने से पाप है। उपपाप के सद्भोग अगणित है इसलिये उन को गिनाने प्रकरण में उसका उल्लेख सिर्फ इसलिये किया
जरूरत नहीं है। मख्य मख्य दोगों से जाना है कि वह व्यभिचार नामक उपापक मनुष्य बचा रहे तो इतना हाने से ही वह सोगी जाति का पाप है। कहा जा सकता है । इसलिये यहाँ खास बाम व्यभिचार, चोरी और विधामका में शामिल दुर्भोगों का विचार कर लिया जाता है। हो जाता है इसलिये उसे अलग गिनाने की
एक बात और है, दुर्भोग का निर्णय भी जरूरत नहीं है अ५. 3. महत्ता चोरी और देशकाल के अनुसार होता है, या कम से कम किसी विश्वासघात से कम नहीं है बल्कि यह सामाजिक कार्य की दुर्भोगता देश काल के अनुसार काफी व्यवस्था और कौटुबिक जीवन को इस तरह घटती बढ़ती है। जैसे-मनमम हिंदुस्थान में बर्बाद करता है कि चोरी और झूठ का पाप भी दोग है बधि हिमा है जब कि ध्रुव प्रदेशों के इसके आगे फीका है। आसपास जहा बनस्पति दुर्लभ है वहां दुर्भग पिछले तीन मनिवार ही वास्तव में नहीं है या स्वरूप है। दुर्भोग भी बहुत से हैं पर उपपाप है। उनमें से मुख्य मुख्य के नाम यहां दिये जाते हैं। २- असम का अर्थ है जिनका
१-व्यभिचार, २-नकम, ३-मान विवाह न हुआ हो या जो विधुर या विधवा हो ..१ व्यभिचार-- अपने पति या अपनी पनी उनमें सार कामसेवन होना। अगर उनमें से के सिवाय किमी पुरुष या खी से कामसेवन कोई भी एक विवाहित है तो वह व्यभिचार उपकरना व्यनिचार है।
नही रह जनकिर अपने सहचर के साथ