________________
भगवती के अंग
[३३२
६-फलमत्य . - जिसका अभिधेय अर्थ से कम करना फल सत्य क्षन्तव्य है, असत्य हो, पर फल या प्रयोजन सत्य बाकी उभयसस्प बसत्य पान २ बस्तुमाय को अर्थ न्यापरक्षक, मनोकर या विश्वसुख उपादेश । के अनुकूल सुखकर हो, वह फलसल्य है । इन नव भेदों में कल्याण का विचार किया जैसे-- अत्याचार से किसी की रक्षा करने के लिये पादै पर इस में दृष्टि अभिधा क्षणा असत्य बोलना, लघुता न होने पर भी अभिमान और व्यन्जना की है। इमलिये अभिषा आदि दूर करने के लिये अपनी लघुता बताना आदि। की दृष्टिसे इन नत्र भेदों के दूसरे नाम इस प्रकार
७. पापमन्य यह है जिस में घटना की होगे - दृष्टिमे तो सचाई है की
१-उभयसत्य- ......... पापमय मिलती है जैसे चोरी सिखाने के लिय सफल चार की कहानियों कहना आदि । यह घटना सत्य है पर
होने से पाप सत्य है।
८-चम्नुभमन्य- जिस घटना से सन्देश कुछ न मिलता हो पर जिसका वर्णन अमात्य हो । स-सा र दृष्टिसे ही कोई टन समाचार कहना या इतिहास वगैरह कर गलत लिख जाना।
इन नामों से अर्थ स्पष्ट हो जाता है । ९-उभयत्रमन्यः- वह है जिसमे घटनः
याच्यवाचक भी असत्य है और उससे जो कर्तव्य के प्रेरणा
की या शब्द और मिलती है या फल मिलता है वह भी अमत्य है।
अर्थ की मुख्यता से थे जो नव भेद बतलाये गये भनयमा
है उनपर विचार करके मनुष्य को उभयअसल्य है। दूसरो को
सत्यत्रत टगने आदि के लिये जो झूठ पोला जाता है वह
पालना चाहिये । पर यह भूलना न चाहिये
कि बोलना सिर्फ शब्दों से नहीं होता-वृदय के भी उभयमल है। इन नव भेदों से पता लग सकता है कि कहाँ कहाँ किस किस अर्थ की
भाव जिम जिस द्वार से बाहर निकलते हैं उस मुख्यता है और उसका प्रयोग किस प्रकार
उस द्वार से भावों का निकालना भाषा ही है। करना चाहिये।
इसलिये हमने यह कहा और वह कहा इत्यादि सभा में पापसत्य हेय है, में
कहने से ही आने भावों का पता दूसरों को दोनों हेय हैं। उनमान का प्रयोग कम
नहीं लगता और न केवल शब्दों से ही दूसरों
के भाव जाने जा सकते हैं। हमारा बोलना * ३३१ पृष्ठ पर नव भेदों के नाम और कम कहाँ तक सत्य है या दूसरा आदमी कहाँ तक कुष्ठ गलत छप गये हैं। ठांक श्रम के अनुसार-
हाहै-यह जानने के लिये हमें भाषा ६-फलसत्य पाना चाहिये । या रक्षक अस-य निकार ...... फलसत्य शामिल के सभी द्वारा से जांच करना देगी और जब
-
-