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भगवती के अंग
मुनाफा ही देना चाहिये | बल्कि अगर ज्यादा दाम बोला गया हो तो उसके दाम वापिस करना चाहिये या कम लेना चाहिये ।
इसी तरह जब कोई हमसे यह कहे कि अमुक चीज़ पर इतने प्रतिशत सुनाकर आप चीज दें और आप उसके को मंजूर कर लेत फिर जूट बोकर उसे ठगनान चाहिये अन्यथा यह हो जायगान रखेगा। प्रश्न- बहुत से मनुष्य बिना किसी द्वेष के छोटी छोटी बातों में झूठ बोला करते हैं पन्द्रह मिनट की कह जायेंगे और एक घंटे मे आयेंगे अमुक समय पर आने को कह जायेंगे और घंटे भर बाद आयेंगे--इसमें बहुत हानि होती है । यह है तो आरम्भज, पर, आरम्भज के समान जरूरी नहीं मालूम होता ।
उत्तर - यह आरम्भज नहीं, प्रमादन है । आरम्भज को क्षन्तव्य मानना चाहिये, पर इस प्रमादज को क्षन्तव्य मानना पड़ता है। वास्तव में यह अपराध है । समय की पावन्दी का हरएक आदमी को खयाल रखना चाहिये । कोई आकस्मिक संकट आ जाय या बहुत जरूरी काम आ जाय और समय की पाबन्दी न हो सके तो बात दूसरी है पर उसके लिये कारण बनाकर अपनी आलोचना अवश्य करना चाहिये और कारण के महत्व के अनुसार पश्चात्ताप भी प्रगट करना चाहिये । हमने अमुक समय दिया है इसका खयाल रखना चाहिये और उसके पालन की चिन्ता करते रहना चाहिये, थोड़ा बहुत त्रास सहकर भी उसका पालन करना चाहिये । पी या प्रमाद बिलकुल न हो, कोशिश पूरी हो, फिर भी अगर समय की पाबन्दी न हो • सके तो यह आरम्भज - अवश्य होगा | अगर ठीक कारण न हो तो प्रमादज होगा ।
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८ स्वरचक तथ्य कोई आदमी अपने को धोका देना चाहता हो ये धोखे से बचने के लिये हमें अतथ्य बोलना पड़े तो यह होगा । पर यह स्वरक्षक न्यायके विरुद्ध न होना चाहिये। एक तरह से यहवार
क्ष में
का अंश है, पर न्यायरविचार गौण हे कदाचित् नहीं है जबकि इसमें स्वार्थ का विचार है। न्यायरक्षक में न्याय के लिये प्रवृत्ति है स्वरक्षक में स्वार्थ के लिये प्रवृत्ति है का स्थान इससे ऊंचा है ।
अपना रहस्य छिपाने के लिये कभी कभी जो जननका करना पड़ता है वह भी अन | वह न्यायरक्षक के लिये ही न हो पर न्याय के विरुद्ध न हो ।
जहाँ तक हो सके
से भी बचना चाहिये, जो भी तथ्य से जीतना चाहिये | अय से अनध्य को जीतना क्षन्तव्य तो है पर अतथ्य से जो आती है उसमें हानि होती ही है ।
९ प्रमाइज अय-से जो मनुष्य असत्य बोलता है वह प्रमाद असल्य 1 समय की पाबन्दी न करना असत्य से व्यावहारिक जीवन में सबको बहुत असुविधा झेलना पड़ती है इसलिये इस अतथ्य का भी त्याग करना चाहिये ।
१० अविवेकज अतथ्य-अन्धश्रद्धा अविचारकता आदि के कारण मनुष्य जो झूठ बोलना है वह अविजय है ।
११ बाधक अतथ्य - ऐसा अतथ्य जो साधक सा मालूम हो, पर चला गया हो न्याय में बाधा डालने के लिये, वह है । इसका