Book Title: Satyamrut Achar Kand
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 132
________________ भगवती के अंग - प्रश्न- इस मार्ग को कुछ अच्छा क्यों कहना ५ भाग्यज - जिस प्रकार भाग्य से प्राणचाहिये ! छल से मौन रखना या गड़बड़ बोलना घात बतलाया गया अर्थात बतलाया गया, उस भी तो अतध्य भाषण हुआ। प्रकार , " नहीं होनागिर भी प्राकृतिक उत्तर-- कुछ रट तो अवश्य हुआ पर कारणा सकुछ का कुछ मुनाई दिया जाया निस्वार्थता होने से आरन न के लिय होने से यह पापठल महा । साथ ही प्रगट रूपने नाम भाग्यज :....कह सकते है इस झट बोलने मे इसमें इतना लाभ अवश्य है कि म किसी का देर नहीं है। अमुक आदमी मुंह से झट नहीं बोटता इमलिये ६मत से या और किसी कारण मंड के शब्दों की या साफ शब्द की कामन से भ्रम हो जाय और उस भ्रम से अतथ्य भाषण बढ़ जाती है इसलिये उतने अंशों में हो जाय तो यह भ्रमज है। इसमें भी प्रकार भी कम होता है। अपराधी नहीं कहा जा सकता। हो, भ्रम न हो न-- डाकुओ से अपने धनकी रक्षा और उसे भ्रम कहा जाय और अपने अतथ्य करने में झूठ बोला जाय तो कैसा ! सती की रक्षा भाषण को भ्रमन कहकर पापफल से बचा के समान इसमें निस्वार्थता नहीं है ! जाय तो यह तक्षक होगा। यह पूरा पाप है । इसी उत्तर-- निस्वार्थता नहीं है पर अन्याय का प्रकार कपाय वेग के कारण भ्रम हो जाय तो विरोध अवश्य है क्योकि डाकुओं का काम भी पाप है । जैसे-एक आदमी हमारा शत्रु है मापूर्ण है इसलिये डाकुओं से असत्य हमारे मन में उससे घृणा द्वेष आदि है, उसने बोला जाय तो यह न्यायक अनम होने से कोई बात महज भाव से कही पर हम उसका क्षन्तव्य होगा। पर इसमें भी कोई सन्देह नहीं सहज अर्थ नहीं लगाते, ऐसा अर्थ लगाते है जिससे कि यह सतीत्वरक्षण आदि पर कर उसकी निदा हो, और उस भाव का प्रकाशन अतध्य-भाषण के बराबर क्षन्तव्य नहीं है क्योकि करते है तो यह भ्रमजान होगा इसमें मुख्यता स्वार्थ की है। आदर्श तो यहां भी तक्षक : होगा। तध्यभाषण ही है, पर परिस्थिति अनुकूल न जैसे एक संयुक्त कुटुम्ब में कुछ चीज खाने हो तो अतथ्य-भाषण किया जा सकता है वह के लिये आई, कुटुम्ब का कोई आदमी वह चीज क्षन्तव्य होगा। टेने लगा, कुटुम्ब के मुखिया ने उससे कहा थोड़ी ४ सहज- सहज हिंसा की तरह सहज थोड़ी चीज दूसरों को देना है इसलिये कुछ अतथ्य भाषण नहीं होता । हिंसा तो बिना बची रहने दना । यह मृरना इसलिये थी कि प्रयत्न के भी हो जाती है पर अतथ्य भ. पण लेनेवाला मर्यादित उपयोग करे, पर कुटुम्ब के इस प्रकार बिना प्रयत्न के नहीं होता । बिना मुखिया से था उसे द्वेष, इसलिये उसने ऐसा अर्थ प्रयत्न के अगर की आवाज निकाली भी जाय लगाया कि ये हमें कुछ लेने ही नहीं देन्ग चाहत, तो उसका सम्बन्ध-विधान से नहीं होता पद पद पर अपमान करना चाहते हैं। इसलिये इसलिये उभे अतथ्य-भाषण नहीं कह सकते। उसे बदनाम करने के लिये बह इस तरह चिल्लाया

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