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सत्यामृत
प्रश्न-जा
प्रश्न-'प्राणिक्य से मरी हट जायगी' इस पहिले वह अपना, अपने बाल बच्चों या कुटुंबियों भ्रम के कारण अगर वह घात अविवेकज है तो का बलिदान करता जिससे सकुटुम्ब स्वर्ग में चिकित्सक भी अविवेकज घ.ती कहलायेगे । क्यों रहने को मिले । ऐसा नहीं करता इमसे मालूम कि औषध के भ्रम से या रोग के निदान के भ्रम होता है कि वह अपने को और दूसरों को धोखा से उनसे भी घात हो जाता है।
देता है । इसलिये ऐसे बालदान में अविवेकज उत्तर-यह घत भ्रमज है । अविवेकज और तक्षक प्राणघात तो है ही साथ ही विश्वासअन्धश्रद्रा के आधार पर होता है और भ्रम में घात भी है। प्रयोग के समय आकस्मिक कारण से अजान
प्रश्र-जो आदमी घर पर माम ग्वाते है कारी होती है । चिकित्सा के मूल में औषध और वध भी करते हैं वे धर्मस्थ न में भी अगर व रोग के सम्बन्ध के विषय में हमारा या उस करते हैं तो इसमें अविवेक क्या हुआ ? उनके विषय के आप्तजनका परीक्षित ज्ञान रहता है, अन्ध- लिये वह घात अबात का प्रश्न नहीं है किन्तु श्रद्धा में ऐसा परीक्षित ज्ञान नहीं होता । जैसे अपनी सम्पत्ति समाज को दे देने का भाव है । अमुक रोग पर अमुक दबाई काम करती है यह ईश्वर या खुदा के नाम पर बांट देने के भाव हैं बात परीक्षित है अब यह बात दूसरी है कि दवाई बाकि वे यह भी सोचते हैं कि सब लोग एकाध ठीक न बनी हो, खराब हो गई हो, ऋतु अनु- पश वध करके थोडा थोडा प्रसाद पा जाँय तो कूल न हो, या रोग का निदान ठीक न हो यह अच्छा बनिसत इसके कि सब लोग अलग २ इसलिये दवाई से हानि हो जाय पर उमा पशुबध करके बहुत प्राणियों की हत्या करें । उपयोगिता परीदित है इसलिये दवाई के उपयोग - अविवेक नहीं कहा जाता सिर्फ एक तरह का
उत्तर- यहां सिर्फ साधारण मांसभक्षण
का पाप है अविवेक नहीं । यद्यपि मांसभक्षण के भ्रम कहा जा सकता है।
पारसे वे नहीं बच सकते। फिर भी जहां उन बलि से बीमारी हटने का ऐसा वैज्ञानिक का यह भाव है कि अनेक पशुवध राक कर एक परीक्षित प्रयोग नहीं होता इसलिये उसे अन्ध
पशुवध रक्खा जाय वहां तो आंशिक रूप में श्रद्धा या अविवेक कहते हैं।
भगवती की साधना भी है क्योंकि इससे जितना प्रश्न-एक आदमी का यह विश्वास है कि पशुवध रुका उतने अंश में जगत में सुखवृद्धि जो प्राणी देवके आगे मारा जाता है उसे स्वर्ग ही हुई। मिटता है इसलिये वह पशुबलि करता है इसे
प्रश्न- प्रल्हाद ईश्वर का नाम लेता था, उस अविवेकज घात कहा जाय या तक्षक !
का पिता हिरण्यकशिपु सोचता था कि इस प्रकार . उत्तर--अविधेय. ते. यह है ही, साथ ही एक राजपुत्र ईश्वर के भजन में जिन्दगी खोदे तक्षक भी है क्योंकि इसके ममें छल या झूठ है। यह ठीक नहीं उसे तो चतुर और बलवान
र उसका यह विश्वास होता कि देव के आगे शासक बनना चाहिये इसलिये उसने प्रल्हाद की मारा जाने वाला प्राणी स्वर्ग जाता है तो सब से प्रतारणा की क्या इसे वर्वक घात कह सकते