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भगवती के अंग
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बम्बई की घटना है एक भोले आदमी सोने सोने की थापी के लोभ में सेठजी ने अंगूठी उतार की अंगठी पहिने जारहे थे। इतने में एक आदमी दी और पाकिट में जो रुपये आठ आने के रोता हुआ आया और बोटगरी मेरी एक थे वे भी दे दिये और आठ दस तोले की छोटी सी पोटली गिर गई है, क्या आपकी नज़र थप्पी लेकर जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए घर पड़ी है ! सेठजीने .ह.--न भाई मेरी नज़र पहुंचे । रातभर तो खुशी के मारे नींद न आई नहीं पड़ी, कितनी बड़ी थी वह पोटली ! वह पर दूसरे दिन जब पता लगा कि वह थप्पी बोला-ज़रा सी ही तो थी । साढ़े अठारह तोले की ताबें की है उस पर सिर्फ सोने का पानी चढ़ा दो डलियां थीं, चोखा सोना था, हाय, अब तो में इस प्रकार पचीस तीस रुपये में सिर्फ कुछ बेमौत मरा । इतना कहकर उसने बड़ा दुःख पैसों का निकम्मा माल मिला है तब समझे प्रगट किया । इतने में दूसरा आदमी आया और कि ठगमंडली ने उन्हें लूट लिया है। उसने कहा-क्या तुम्हारी पोटली ऐसी थी, पोटली इस में ठगों की बदमाशी तो है है. वे तो के वर्णन से सन्तुर होकर उसने कहा-हां, हां, महपान पर टगे जानेवाले की भी काफी ऐसी ही थी, क्या तुमने देखी है ! आगन्तुक ने गलती है। कहा-एक आदमीने वहां पड़ी हुई एक पोटली
बहुत न टग चोर ऐसे होते हैं जो कमजोर और उठाई थी और वह उस रास्ते चलागया है।
. भोले आदमियों का शिकार किया करते हैं वे जब बह आदमी चलागया तब आगन्तुक ने संयमी आदमी को भी ठग लेते है। जैसे एक सेठनी से कहा-चलो अपन उस आदमी को साजन को एक ठग मिला, ठग बूढा था और पकडे जोनोने की पोटली लेगया है, वास्तव में ऐसा मालूम होता था कि मानो कोई हकीम हो। वह उस तरफ नहीं इस तरफ़ गया है । वह बहथोडी देर सामने ही खड़ा रहा और गौर से ठग सेठजी को एक जगह लेगया जहां एक विहरे और शरीर की तरफ देखता रहा । फिर आदमी सोने की पोटली लिये हुए चला जारहा बोला-नम्हें यह बीमारी कैसे हुई ! उस सज्जन को था। उसे इनने पकड़ा और धमकाया, अन्त में बीमारी का पता न था, वे ठग की बातो मे आगये । यह तय हुआ कि सोने के तीन भाग करके ठग ने बातचीत से दस्त वगैरह की थोड़ी बहुत तीनों आदमी बाँटलें । पर जब पोटली खोली खराबी का पता मलिया और उस सज्जन से गई तो सोने की थप्पियाँ निकलीसि दो, अब कहा-माई, बीमारी छोटी हो या कई अभी ची चुपचाप कैसे बाँटा जाय इसलिये ठगने कहा- नहीं, तुम एक काम करो, मैं एक नमवः लिम्बा देख, एक थप्पी मैं लेता हूं, एक थप्पी इन सेटजी देता हं तुम बाजार में से दवाइया बाद कर दस को देता हूँ और इसके बदले में तुझे मैं अपनी पन्द्रह दिन उपयोग करोगे तो अवश्य लाभ होगा। दाई तोले की अंगूठी देता हूँ और ये सेठजी इतना कहकर एक निःस्वार्थ परोपकार की तरह तुझे अपनी अंगूठी और कुछ नम्दी देंगे। यह उसने दवाइयाँ नि: । सजनने ममः अदर कहकर उसने दाई तोले की उतारकर दे पा परे एक राया. बिन, पैसे के ही नुसन्या लिखा दी और सेठजी से कहा, आप भी दे दीजिये। दिया। पर नुसखे में एक दवाई ऐसी थी जिसका