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अक्रोध
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विनय और आत्मगौरव दोनों का उचित समन्वय वापस नहीं लिया जा सकता । क्रोध करके निरभिमानी बनना भगवती की मन-साधना तीव्र शस्त्र होने से अपने पर या दूसरे पर जो के लिये अन्यावश्यक है।
आात करता है वह आघात वापिस नहीं आन् । ___ मोह और अभिमान समस्त पापों के मूल क्रोध का आवेग तीव्र होने से मनुष्य की हैं। मोह और अभिमान नष्ट हो जाने पर क्रोध विचारक शक्ति नष्ट हो जाती है और वह आग
और छल नहीं रह पाते । जैसे हाथ के कट जान से में कुछ का कुछ कर जाता है । इस तरह की तलवार का उपयोग नहीं हो सकता इमी प्रकार मोह यह कहानी प्रसि है। और अभिमान नष्ट होने पर क्रोध और छल का उप
एक स्त्री ने एक नौला पाल रक्या था । वह योग नहीं हो सकता । इमलिय मोह और अनिम्न
अपने शिशु को पालने में मुलाकर जब पानी को हस्त-कषाय और क्रोव और छल को दास-कापाय
भग्ने गई तो नौले को शिशु की रक्षा के लिये कहा है। भगवती की साधना में इन दोनों का
छोड़ गई । इतने में एक सर्प आया और पालने त्याग मुख्य है।
पर चढ़ने लगा पर ज्यों ही नौटे की नज़र पड़ी अक्रोध
नै.ले ने सर्प को मार डाला और उसके टुकड़े क्रोध का स्वरूप पहिले कह दिया गया टुकडे कर दिये । जब बच्चे की माँ आई और है। मोह और अभिमान से पाप को प्रेरणा उसने नौले के मुँह में खून लगा देखा तो उसने मिलती है पर दुनिया के साथ संघर्ष होने में सोचा कि नौले ने मेरे बच्चे को मार डाला क्रोध और छल का सीधा उपयोग होता है। है बस गुस्से में उसने सिर का घड़ा नौले पर क्रोध में अन्य कषायों से एक विशेषता यह है पटक दिया, बेचारा नौला मर गया । पर जब कि वह दुःख देनेवाला ही नी दयामर भी उसन पालन में अपने बच्चे को सुरक्षित देखा है या अन्य कषायों से अधिक दुःखत्मक है । और सांपके टुकड़े देखे तो पश्चात्ताप करने लगी मोड और अभिमान का फल दःख है पर उनका पर पश्चाताप स नौला जीवित न हुआ। संवेदन इतना दुःखात्मक नहीं होता । मोह से इष्ट
क्रोधके आवेशमें मनुष्य ऐसी ऐसी गालियाँ वियोग आदि के सत्य दुःखानुभव होता है स्वयं
बकजाता है, गुरुजनों, उपकारियों तथा अच्छे तो मोह दुःखात्मक नहीं मालूम होता; अभिमान
से अच्छे सज्जनों पर भी ऐसे बचनःण छोड़ में भी कुछ छाती ही फलता है पर क्रोध में तो
जाता है जो कभी वापिस नहीं आते, इस प्रकार मनुष्य तड़पता है चिल्लाता है फड़फड़ाता है इस
यह धर्म परोपकार आदि के मा में प्रकार उसी समय उनकारक का बहुत अनुभव करना पड़ता है।
अटकाता ही है, व्यवहार का नाश तो करता ही क्रोध में दूसरी कार्यों से एक दूसरी विशे- है, किन्तु खुद भी स्थान-नष्ट होता है। पता यह भी है कि अन्य कषायों की कालिमा
के प्रगट करने के बाद यह बहुत कठिन है का प्रभाव जितनी जल्दी वापिस जा सकता कि सच्चे दिलसे क्षमा मांगी जाय। क्षना का है उतनी जल्दी क्रोध की कालिया का प्रभाव रिवाज पूरा कर भी दिया जाय नोभी उसका