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अक्रोध
३ - एक भाई एक सेठजी के यहाँ मुनीम थे, काम में होश्यार थे, कोई ऐसी चोरी न करते थे जो सरकार में चोरी कही जामके, पर इस का कारण उन की ईमानदारी या संयम नहीं था, नौकरी छूटने का भय था । वास्तव में वे असंयम को जीत न सके थे। इसलिये अपने लिये कोई तरकारी खाते तो सेठजीके हिसाब में लिख देते, किसी चीज की जरूरत होती चुपचाप उठालाते, जय तपम होती कि वह चीन कहाँ गई तो सुनकर भी चुप रहते, कभी जब पकड़े जाते तो कहते किसी तरह वह चीज मेरे घर चली गई होगी, आतिथ्य के लिये जो चीजें रहतीं वे अपने दोस्तों को खिला देते, सेठजी की अनुप में जब कोई अपरिचित आदमी मिलने आता तो इस तरह परिचय देते जिससे वह समझे कि ये मुनीम नहीं मालिक हैं, इस प्रकार कभी कभी झूटे गौव का अनुभव करलेते और महीने में रुपये आठ आने की पर इतने से क्षुद्र लाभ के लिये वे बड़ा परिश्रम करके भी मालिक की नजरों में तुच्छ और अविश्वसनीय बन बैठे | मालिकने उनकी रोकदी, हर दिन कुछ खाने पीने की चीजें भेंट में मिलती थीं वे बन्द करदी, दीवाली का इनाम बन्द कर दिया. पर वे सन्मान से कुछ पाने की आदत न डालसके, छिपाकर झूठ बोलकर लेने की आदत ही रही। इस तरह वे आने की जगह पैसा भी न पासके, इज्जत खो बैठे, एक दिन नौकरी से अलग भी कर दिये गये, इस प्रकार अपनी नादानी से अपना जीवन चित्र बर्बाद कर बैठे। ४- एक भाई थे, जगत की सेवा के लिये सर्वस्व दे चुके थे अनेक कष्ट सहे थ, देवता की तरह पुजे भी, पर उनकी अनैतिकता अहंकार
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अविश्वसनीयता ने उन्हें कुछ अप्रिय बना दिया । चतुर कलाकर होते तो इस बिगड़ते जीवन चित्र को सुधार लेते पर न सुधार सके, आवेश में चित्र को बिगाड़ने लगे । पुराने पुण्य का पश्चात्ताप करने लगे, इस प्रकार जगत् के लिये भिखारी बन कर भी पतित बने, अपना जीवन बर्बाद किया पर जगत को भी लूटा । आप इबे की दूसरों को भी डुबाया ।
५- एक विधवा बाई थी. शिक्षित थी, सुंदर थी, पर वनक ग न सँभाल सकती थी एक सुधारक ने विवाह करने की सलाह दी, पर उस ने सुधारक को पचास गालियाँ सुनाई । लेकिन कुछ महीने बाद व्यभिचार में पड़ गई, बिना विवाह के एक पुरुष के पास रहने लगी, लोगोंने फिर भी शादी करने की सलाह दी, फिर भी उसने गालियाँ चैन कहना है कि मैं अमुक
की पत्नी बन गई हूं। लोग चुप रहे । कुछ दिन बाद गर्भ रहा, पुरुष का दिल ऊब गया, बन्धन कुछ था नहीं, उसे निकाल बाहर किया, अन्त में आमहत्या करके मर गई । ब्रह्मचर्य से रह सकती या विवाह कर देती तो जीवन-चित्र न बिगड़ता ।
६- एक नववधू थी, सासससुर काफ़ी प्यार करते थे पर उसे दिनरात यह ख्याल रहता था कि मुझे सब मालिक तो समझते हैं ? नौकर तो नहीं समझते। सास कर्मठ थी, घर के बहुत से काम करती, थोड़ा बहुत काम बहू को भी बता देती पर बहू तबतक उस काम में हाथ न लगाती जबतक सास आधा काम करने के लिये तैयार न हो जाती, सास को और काम पूरे करना पड़ते जो बहु के बश के नहीं थे, और बहू के