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लोकगायना
प्रबोधिनी में तीन बातें जरूरी हैं । १. हिंसक को अपने अन्याय का ज्ञान हो जाय, २. उसे अन्याय का पश्चात्ताप हो, ३. कर्तव्य समझ कर पाप से दूर हो- किसी पर दया करके नहीं |
बालक का हट देखकर माँ-बाप झुक जाते हैं। अगर बालक को मार दिया होता है तो उन्हें पश्चाताप भी होने लगता है, पर उन्हें बालक का पक्ष न्याययुक्त नहीं मालूम होता, उन्हें मोहवश दया आ जाती है 1- यह बालक की साधना नहीं है | बालक मे महता और स्वार्थ है- मां-बाप में मोह है ।
जो प्रबोधिनी - साधना का साधक है उसमें दयनीयता नहीं आना चहिये रहना चाहिये ।
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लोकसाधकों का रूप भगवती की लोकसाधना करने वाले टोकस नाना तरह के होते हैं। अपनी अपनी योग्यता, रुचि और समझ के अनुसार साधना का क्षेत्र चुन लेते हैं, एक साधना के साधक में दूसरी साधना के अंश नहीं यह बात नहीं है पर जिसकी मुख्यता होती है, उसी में उसकी प्रसिद्धि हो जाती है लेकिन किसी एक लोक-साधना से जगत का काम नहीं चल सकता, कहीं संहारिणी की आवश्यकता है कहीं प्रबोधिनी की। जो उचितस्थानों पर उचित लोकसाधना का उपयोग कर सकते हैं उनका साधक जीवन सभी के लिये आदर्श हो सकता है। मनुष्य को चाहिये कि वह प्रबोधिनी और संहारिणी दोनों चनाओं का योग्यरूप में साधक हो । जैसे कि म. राम, म. कृष्ण, और म. मुहम्मद के जीवन थे
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के बिना किसी भी सकता इसलिये हर
साधक का काम नहीं चल एक के जीवन में यह कफी मात्रा में रहती है पर बहुत से साधक अपने जीवन में सिर्फ प्रबोधिनी
साधना ही करते है, क्योंकि उनका कार्यक्षेत्र इसी के अनुकूट होता है। जैसे म महावीर, म. बुद्ध, म. ईसा आदि के जीवन में प्रबोधिनी
ही पाई जाती है। अगर ये लोग संहारिणी लोकसाधन को अपनाने तो ये अपने कार्यक्षेत्र में असफल रहने ।
पर बहुत से साधक एक बड़ी भारी गलती कर जाते हैं ये स्वयं जिस साधना में निष्ण. त होते हैं वही साधना सब के हाथ में देना चाहते है फल यह होता है कि वह साधना विफल हो जानी है, क्योंकि सभी की बराबर योग्यता नहीं होती । एक आदमी प्रेमदर्शनी
में निष्णात हो सकता है पर इसीलिये सभी को वह इस लोकसाधना के लिये प्रेरित करे तो साधना निष्फल जायगी । उसके गाउपर कोई तमाचा मारे और वह दूसरे गाळपर तमाचा खाने के लिये तैयार हो जाय तो कोई बुराई नहीं । पर समाज के लिये इसी नीति से काम ले बनकर वह इस साधना के नाम पर अपराधियों को छोड़ दे तो वह साधना के नामपर ऐसी असाधना करेगा कि हिंसा का विस्फोट होने लगेगा |
इस विषय में सबसे अच्छी बात यह है कि अपने विषय में अपनी योग्यता और रुचि के अनुसार चुनाव कर ले परन्तु जनता को सब साधनाओं के रूप साधना का उपदेश दे क्योंकि जनता में सब तरह के लोग रहते हैं ! जैसे म. महावीर तो और