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अक्रोध
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। उसी तरह हमारे दिल में छिपे हुए क्रोध से क्रोध करने का पर्याप्त कारण मिलने पर की लोग सशंक और बेचैन रहते हैं। हम आत्मौपम्य भाव से कुछ विचार करो इस तरह केतनी ही कोशिश करें, उस को छिपाने के विचार करने से पचास में से चालीस घटनाएं हेये कितने ही आवरण डालें उसकी असलियत तुम्हें क्रोध योग्य न मालूम होंगी। बाकी दस गट हुए बिना नहीं रहती। हमारी प्रवृत्तियाँ घटनाएं अगर क्रोध योग्य निकलेंगी भी तो तुम्हारी . गबना के अनुसार होती हैं, बुद्धि के द्वारा अगर विचारकता के कारण क्रोध चिकत्सकता का रूप पावना पर आवरण डालते भी रहें तो भी इसमें धारण कर लेगा। क्रोध को जीतने का मूल में बड़ा परिश्रम पड़ता है और फिर भी वह उपाय तो मोह और अभिमान पर विजय पाना नेरर्थक जाता है। क्योंकि सोते जागते उठते है । उनके जीत लेने पर क्रोध को ठिते प्रत्यक्ष परोक्ष में बुद्धि का का आवरण पैदा होने के भीतरी कारण ही नष्ट हो जाते हैं खेसक हो जाता है, क्रोध-किट या वैर प्रगट ही पर अगर उन पर पूरी या पर्याप्त विजय न मिल हो जाता है। इस प्रकार छिपे हुए घावों से पाई हो तो भी क्रोध के निमित्त मिलने दुनिया बहुत घबराती है और हमें इस दुष्कर्म पर तब तक तो उसे रोकना ही चाहिये जबतक और दुप्फल का भान नहीं होने पाता। साथ उस घटना को अच्छी तरह समझ न लिया ही इतनी बुराई और है कि एक के बदले लोग जाय । इस विवेक से धारे धीरे क्रोध किसी दिन इस वैरों की करना कर लेते हैं इसलिये जहां हम निर्मल हो जायगा । सिर्फ चिकिता के अनुकूल नेर होते हैं वहां भी हमें वैरी समझ लिया जाता है। अरुचि का भाव रह जायगा । क्रोध अग्नि के समान है जो अपने को
निश्छलता और मरों को जलाता रहता है । और क्रोध
छल का भी स्वरूप पहिले कहा जा चुका किट्ट तो तेजाब की तरह भयंकर और वंचक है। है ल एक तरह का निर्ब उता का परिणाम है। वह तरल होकर भी जलाता है। क्रोध का कि जहा हम
अपने मोह और अभिमान हो या कालिमा, दोनों का त्याग करना चाहिये। के सफल नहीं बना सकते, क्रोध का उपयोग
अगर कभी क्रोध का अवसर आ भी जाय नहीं कर सकते यहाँ छल का उपयोग करते हैं। तो भी क्रोध को रोक लो और जिस कारण से छल के विषय में भी यह बात ध्यान में रखना क्रोध आया है उसकी जाँच कर लो । जाँच चाहिये कि जहाँ भक्षण और तक्षण के लिये करने पर फीसदी पचास घटनाएँ ऐसी मिलेंगी कोई बात छिपाई जायगी वही जण है जिनमें तुम्हें अपना भ्रम मालूम हो जायगा, किन्तु जहाँ विनिमय रक्षण वर्धन आदे के लिये किसी बात को सुनकर या देखकर भी बिना कोई बात छिपाई जाती है वझ छल कपाय नहीं बिचारे क्रोध न करो, सारी घटना को अच्छी होती वहां चिकितना समझना चाहिक तरह समझ लो फिर क्रोध करने का पर्याप्त कारण है। कभी कभी तीर्थकर पैगम्बर और अवतारों भी होगा तो भी विचार करने पर क्रोध का को भी सुवैद्य की तरह कोई बात छिपाना पड़ी आवेग कुछ धीमा पड़ जायगा।
है पर इससे वे अन्ट-कपाश्री नहीं हो जाते।