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सत्यामृत
पथ्य दे रही थी उसी समय मनुष्यों का कलकल परिचय दिया होता । पति-मोह से मैंने पति को सुनाई दिया । कोई कह रहा था इधर इधर । भी खोया होता और सत्य को भी खोया होता । कल्याणी ने देखा कि वह एक ब्राह्मण-कुमार है पति-प्रेम से आज दोनों को पाया है। जिसे कि उनने उस दिन राजसभा में महर्षि
महर्षि- इसीलिये तो कहता हूं कि उस के साथ देखा था। उस के पछि पछेि ही
दिन तेरी ही जय हुई थी पर मेरा पराजय हुआ ब्राह्मण-बटुकों के साथ खुद महर्षिजी चले आते
था। थे । कल्याणी ने उन्हें बैठने के लिये तृणासन देते हुए कहा-महाराज, हम गरीब लोग इस कल्याणी- नहीं महाराज, अगर आपकी जंगल में आपका और क्या स्वागत कर सकते हैं !
__ जय न हुई होती तो उस दिन आपकी जय कभी ___ महर्षिने कहा--बेटी, तुम्हारी इस गरीबी पर
घोषित न करती । मेरा क्या ? मैं तो उस दिन हज़ारों रवधैभव न्यौछावर किये जासकते हैं। मध्यस्थ थी-वादी-प्रतिवादी नहीं, इसलिये मेरी जय कीचड़ मिले पानी में शकर डालने से मिठास तो क्या और पराजय क्या ?
आयगी पर वह शुद्धजल की बराबरी न तो स्वाद महर्षि-निःसंदेह उस दिन शब्दवाद में मेरी में ही कर सकता है न स्वास्थ्य में ही। तुम्हें इस जय थी पर अर्थवाद में तेरी ही जय हुई। जंगल में जो सुख मिन्दा है बह राजाओं के मान प्रेम और माह में क्या अन्तर है यह बात तो राजसिंहासन पर मिल सकता है न रणवास मैं जीवन भर शब्दों में ही कहता रहा हूं पर में । उसमें कितनी ही शक्कर पड़ी हो पर कीचड़ तने उसे जीवन में उतार कर बताया । जीवन सारा मजा किरकिरा कर देता है और उस में
की परीक्षा में मैं उतना उर्णि नहीं हुआ जो दय, कृमि होते हैं उनका विचार
जितनी त हुई है । जिस दिन से तुम दोनों ने किया जाय तो दुःख के पहाड़के आगे सुख कण
घर छोड़ा उस दिन से मैं और मेरे शिष्य गुप्त सा ही दिखाई देता है।
रूप से तुम्हारी गति-विधि पर बराबर ध्यान देते कल्याणी ने विनयपूर्ण लज्जा के कारण सिर रहे हैं। कल जब शारदाचरण की बीमारी और झका लिया किन्तु महर्षि कहते ही गये- तेरी सेवा-परायणतः के मुझे समाचार
बेटी, एक दिन मने राजसभा में अपने पति मिले तब तेरा पुण्य-तेज मेरे लिये का पराजय घोषित किया था किन्तु आज मैं असहय हो गया और आज रोता हुआ उसी अपना पराजय घोषित करने के लिये इस जंगल तरह मैं चला आ रहा हूँ जैसे कोई बाप अपने में आया हूं।
बेटी-बेटों के लिये दादा आ रहा है।। कल्याणी ने 4x: म, यह आप इसी समय शारदाचरण झोपड़ी में से धीरे२ नम्रता है । उस दिन सत्य मादम हुआ यह मदर आय और महर्षि की चरण-वंदना करके अपने विरुद्ध होने पर भी मैने स्वीकार किया । बोले-गुरुदेव, उस दिन मैं शब्द से पराजित अगर मैं ऐसा न करनी तो मैंने सल की अबहे- दुआ था अउ अर्थ से पराजित हो रहा हूँ सना करके पति-प्रेम के बदले पति-मोह का इसलिये मैं आपको अपना गुरु मानता हूँ । प्रेम