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आभार-प्रदर्शन मुझे सरस्वती पर कार्य करने का प्रोत्साहन प्रो० सूर्यकान्त, अध्यक्ष, संस्कृतविभाग, अलीगढ़ विश्वविद्यालय, अलीगढ़ से मिला । डॉ० सूर्यकान्त सर्वप्रथम बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस में संस्कृत-विभाग के अध्यक्ष थे। वहाँ से अवकाश प्राप्त कर अलीगढ़ आये थे। मैं ने सरस्वती पर शोध-कार्य डॉ० मंत्रिणी प्रसाद के निर्देशन में प्रारम्भ किया था, परन्तु उन के विदेश चले जाने पर शोध-कार्य की समाप्ति प्रो० राम सुरेश त्रिपाठी के सुयोग्य निर्देशन में हुई । यह ग्रंथ यद्यपि पीएच० डी० से सम्बद्ध नहीं है, परन्तु उस अध्ययन की शृङ्खला से अवश्य जुड़ा है । फलतः मैं इस अध्ययन के लिए अपने उन सभी गुरुओं का आभारी हूँ।
__ मेरी पुस्तक 'सरस्वती इन संस्कृत लिटिरेचर' सन् १९७८ में प्रकाशित हई थी। उस पुस्तक का विद्वानों ने इतना स्वागत किया कि उसका प्रथम संस्करण तीन वर्ष की अवधि में ही समाप्त होगा । विद्वानों एवं मित्रों ने पुनः पुनः उसके दूसरे संस्करण के निमित्त मुझे प्रेरित किया। पुस्तक लिखते समय तथा बाद में मुझे सरस्वती पर चिन्तन करने का अवसर मिला । समय-समय पर मेरे शोध-लेख छपते रहे । प्रकृत पुस्तक में उन शोध-लेखों का संग्रह है। मैं उन विद्वानों तथा मित्रों का आभारी हूँ, जो मुझे सदैव प्रेरित करते रहे। मुझे आशा है कि वे इस पुस्तक को देख कर हर्षातिशय का अनुभव करेंगे।
मेरे पास समय-समय पर सङ्केतित पुस्तक के निमित्त पत्र आते रहते हैं । इस पुस्तक के प्रकाशित होने पर मैं हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ कि उन के पत्रों का उत्तर देते समय अब मैं उन्हें निराश नहीं करूँगा। प्रथम पुस्तक न सही, वे इस पुस्तक को जानकर प्रसन्न होंगे । मैं इस कोटि में आने वाले विद्वान् तथा विद्यार्थियों का भी आभारी हूँ । अभी कुछ दिन पूर्व कई पत्र (R-357/220 Dated 15.5.85 तथा R-357/112 Dated 15.2.85) भारतीय ज्ञान-पीठ, नई दिल्ली से आये हैं । यह पत्र श्री गोपीलाल अमर जी का है, जो वहाँ रिसर्च आफ़िसर हैं। मैं आज उनको साभार सूचित कर रहा हूँ।
___ मैं ने इस पुस्तक को लिखने में अनेक विद्वानों की पुस्तकों तथा लेखों की सहायता ली है, अत एव उन के प्रति आभारी हूँ।
मैं ने अपनी प्रथम पुस्तक लिखते समय अनेक पुस्तकालयों की सहायता ली थी। ऐसे पुस्तकालयों में मौलाना आज़ाद पुस्तकालय, अलीगढ़ विश्वविद्यालय; भण्डारकर