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प्रस्तावना
सरस्वती वैदिक आर्यों की पूज्य देवी थी । इस ने वैदिक सभ्यता को अत्यधिक प्रभावित किया था । इस के कई कारण हैं । उन कारणों में से एक कारण सरस्वती का नदी होना है । यह ऋग्वैदिक काल की सबसे विशाल तथा महती नदी थी तथा इस ने वैदिक सभ्यता तथा संस्कृति के विकास अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योग दिया था | अनेक ऋषि इस के तट पर निवास करते थे, जहाँ से उन्होंने ऋचाओं का दर्शन किया तथा वेद अस्तित्व में आए। यह नदी शनैः शनैः स्नेहाधिक्य के कारण नदी- देवता बनी तथा पुनः वाक्, वाग्देवी तथा देवी बन गई। इस प्रकार इस सरस्वती के पीछे उत्पत्ति तथा विकास का एक विचित्र इतिहास है । ब्राह्मणों तादात्म्य वाक् से हो गया है। तंत्रों में इसे एक नाडी- विशेष से संयुक्त कर दिया गया है। पुराणों में इस का मूर्तिकरण हो गया है । आधुनिक काल तक आते-आते यह अनेक कलाओं तथा विद्याओं की अधिष्ठातृ देवी बन गई है । ग्रीक तथा रोमन पुराण-कथा में इस के समकक्ष कुछ देवियाँ हैं, जिन का व्यक्तित्व सरस्वती से बहुत मिलता-जुलता सा है । ऐसे व्यक्तित्व वाली सरस्वती के स्वरूप का निरूपण एक आकर्षण का विषय है ।
इस का
सरस्वती से सम्बद्ध कुछ ग्रंथ हैं तथा उन में से मुख्य रूप से डॉ० ऐरी, डॉ० एन० एन० गोडबोले तथा स्वत: मेरी 'Sarasvati in Sanskrit Literature' मुख्य हैं । इन के अतिरिक्त अन्य ग्रंथों में प्रसङ्गतः सरस्वती पर विद्वानों ने विचार किया है । के० सी चट्टोपाध्याय, सर आरेल स्टाइन, दिव प्रसाद दास गुप्त, आनन्द स्वरूप गुप्त, बी० आर० शर्मा आदि ने स्वतंत्र रूप से सरस्वती पर शोध-लेख लिखे हैं ।
प्रकृत पुस्तक में शोध - लेखों का संग्रह है । ये शोध-लेख सरस्वती के अनेक स्वरूपों को स्पष्टत: प्रकाशित करते हैं । इन शोध-लेखों को समय-समय पर विद्वानों के सम्मुख प्रस्तुत किया गया था तथा शोध-पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया था । ऐसे लेखों का संग्रह विद्वानों के सम्मुख पुस्तकाकार में आ रहा है । आशा है कि विद्वान् इस का स्वागत करेंगे ।
दिनाङ्क १२.७.१९८५
- मुहम्मद इसराइल खाँ